स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरणा था ‘भारत का स्वत्व’ : श्री जे. नंदकुमार

स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरणा था ‘भारत का स्वत्व’ : श्री जे. नंदकुमार

गलतियां नहीं दोहरानी तो इतिहास याद रखें : प्रो. केजी सुरेश

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में ‘स्वतंत्रता आंदोलन एवं भारतीय दृष्टिकोण’ पर विशेष व्याख्यान का आयोजन

भोपाल, 09 नवम्‍बर, 2021: औपनिवेशिक मानसिकता के लेखकों ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को राजनीति तक सीमित करके प्रस्तुत किया है जबकि स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरणा ‘भारत का स्वत्व’ था। इस ‘स्व’ को जगाने के लिए हमारे स्वतंत्रतासेनानी बहुआयामी स्तर पर प्रयास कर रहे थे। यह विचार प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक श्री जे. नंदकुमार ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में आयोजित विशेष व्याख्यान में व्यक्त किए। ‘स्वतंत्रता आंदोलन एवं भारतीय दृष्टिकोण’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन विश्वविद्यालय स्तर पर गठित अमृत महोत्सव आयोजन समिति की ओर से किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने की।

लेखक एवं चिंतक श्री जे. नंदकुमार ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के संबंध में अनेक भ्रम स्थापित करने के प्रयास किए गए हैं। ब्रिटिश और औपनिवेशिक मानसिकता के लेखकों ने यह स्थापित करने का प्रयास किया कि भारत का स्वतंत्रता आंदोलन केवल उत्तर भारत तक सीमित था। यह अंग्रेजी पढ़े-लिखे तथाकथित उच्च वर्ग का आंदोलन था। यही कारण रहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने वाले अनेक स्वतंत्रतासेनानियों एवं उनके आंदोलनों को जानबूझकर जबरन दबाया गया है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों को शोध करके भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के नये तथ्यों को समाज के सामने लाना चाहिए। श्री नंदकुमार ने अपने उद्बोधन में पूर्वोत्तर, दक्षिण भारत और शेष अन्य भारत में चलाए गए आंदोलनों और उसमें शामिल हुए नायकों का उल्लेख करके बताया कि भारत की स्वतंत्रता में समूचा देश और सब प्रकार के नागरिक एक भाव के साथ शामिल हुए थे। उन्होंने कहा कि हम सदैव याद रखें कि हम जो सांस लेते हैं, उस हवा में वीर सावरकर, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, सरदार भगत सिंह, प्रफुल्ल चाको और ऊधम सिंह जैसे अनेक नायकों के खून, पसीने और आंसुओं के कण भी शामिल हैं।

शोध की दिशा का आधार हो भारत का स्वत्व:

श्री नंदकुमार ने कहा कि भारत का गहन अध्ययन करके महर्षि अरविंद ने बताया है कि स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरणा अध्यात्म और भारतीय मूल्य थे। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सत्ता बहुआयामी स्तर पर अपनी व्यवस्था को थोपने का कार्य कर रही थी। नाटकों में अभिव्यक्त होने वाली देशभक्ति को रोकने के लिए अंग्रेजों ने थियेटर एक्ट बनाया। मणिपुर और मोहिनी अट्टम नृत्य तक पर प्रतिबंध लगा दिया था। यही कारण है कि भारत के स्वतंत्रतासेनानी न केवल राजनीतिक क्षेत्र में अपितु शिक्षा, संस्कृति, कला, कृषि, उद्योग और विज्ञान इत्यादि क्षेत्रों में भारत के स्वत्व को जगाने का प्रयास कर रहे थे। इसलिए हमारे शोध की दिशा भारत के स्वत्व के आधार पर होनी चाहिए।

गलतियां नहीं दोहरानी तो इतिहास याद रखें : प्रो. केजी सुरेश

कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि इतिहास को याद रखने का बहुत महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग इतिहास भूल जाते हैं, वे इतिहास की गलतियों को दोहराते हैं। यदि हमें अपनी गलतियों को दोहराना नहीं है तो हमें अपना इतिहास याद रखना चाहिए। इतिहास गलतियों से सीखकर आगे बढऩे की प्रेरणा देता है। उन्होंने कहा कि भारत का स्वतंत्रता आंदोलन एक जनांदोलन था। कुलपति प्रो. सुरेश ने कहा कि स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के अंतर्गत विश्वविद्यालय ने एक समिति का गठन किया है। हमारा उद्देश्य है कि उन लोगों को सामने लाया जाए, जिनके बारे में हम अधिक नहीं जानते हैं। इससे पूर्व विषय का प्रतिपादन करते हुए समिति के अध्यक्ष प्रो. श्रीकांत सिंह ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास लिखने में तथ्यों के साथ मिलावट की गई है। ज्यादातर लेखन अंग्रेजियत के दृष्टिकोण से किया गया है। वर्तमान समय में आवश्यकता है कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को भारतीय दृष्टिकोण से लिखा जाए। कार्यक्रम का संचालन डीन अकादमिक प्रो. पी. शशिकला ने और आभार ज्ञापन कुलसचिव प्रो. अविनाश वाजपेयी ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।

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मनुष्य की बायोलॉजिकल आवश्यकता है ‘संवाद’ : प्रो. बी.के. कुठियाला

मनुष्य की बायोलॉजिकल आवश्यकता है ‘संवाद’ : प्रो. बी.के. कुठियाला

समाजोन्मुखी हो संचार व्यवस्था : प्रो. केजी सुरेश

‘अहम् ब्रह्मास्मि’ की घोषणा को भी स्वीकार करती है भारतीय संवाद परंपरा : श्री विजय मनोहर तिवारी

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता : भारतीय दृष्टि’ पर संगोष्ठी का आयोजन एवं पुस्तक ‘संवाद का स्वराज’ का विमोचन

भोपाल, 26 अक्‍टूबर, 2021: कोरोना महामारी ने बता दिया है कि सिर्फ रोटी, कपड़ा और मकान ही मनुष्य की आधारभूत आवश्यकताएं नहीं हैं। भोजन और प्रजनन के साथ ही संवाद भी मानव की बायोलॉजिकल आवश्यकता है। बिना संवाद के मनुष्य का जीवन संभव नहीं है। यह विचार हरियाणा उच्च शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रो. बी.के. कुठियाला ने व्यक्त किए। वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता : भारतीय दृष्टि’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित हुए। इस अवसर पर उनकी पुस्तक ‘संवाद का स्वराज’ का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में राज्य सूचना आयुक्त श्री विजय मनोहर तिवारी उपस्थित रहे और अध्यक्षता कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने की।

‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और भारतीय दृष्टि’ पर अपने विचार रखते हुए उन्होंने भारतीय वांग्मय के प्रसंग बताए। उन्होंने कहा कि देवर्षि नारद जब महाराज युधिष्ठिर के दरबार में गए तब उन्होंने उत्तर की अपेक्षा किए बिना ही 133 प्रश्न पूछे। इन प्रश्नों में सुशासन के सूत्र हैं। प्रश्न यह है कि एक राजा से प्रश्न पूछने का अधिकार देवर्षि नारद को किसने दिया? जबकि उस समय तो कोई सूचना का अधिकार कानून भी नहीं था। इसी तरह जब श्रीकृष्ण ने मृत्युलोक को छोडऩे का निश्चय किया तब उनके मित्र उद्धव ने अनेक प्रश्न किए। इन प्रश्नों के उत्तर से पता चलता है कि जीवन कैसा होना चाहिए। श्री कृष्ण से प्रश्न करने का अधिकार उद्धव को किसने दिया? यह प्रश्न-उत्तर लोक कल्याण की भावना से पूछे गए। संवाद के प्रति भारतीय दृष्टि लोक कल्याण की है। प्रो. कुठियाला ने बताया कि श्रीमद् भगवत गीता के अनुसार भारतीय दृष्टि में संवाद में अधिकार की भावना से अधिक मर्यादा की बात है। समाज को लाभ पहुँचाना ही वाणी का तप है।

संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि श्री विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि सामान्य तौर पर हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संवैधानिक अधिकारों तक सीमित करके देखते हैं। जबकि अभिव्यक्ति के प्रति भारत की दृष्टि बहुत व्यापक है। विश्व में भारत ही इकलौता देश है जहाँ ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ की घोषणा की जाती है और उसकी स्वीकार्यता भी है। आत्मा भी ब्रह्म है और ज्ञान भी ब्रह्म। जो ब्रह्म मेरे भीतर है, वही तुम्हारे भीतर। भारत के लोगों ने इस अभिव्यक्ति को पेड़ों, नदियों और पर्वतों तक में किया है। श्री तिवारी ने कहा कि भारत में ऐसी घोषणाएं करने वालों के विरुद्ध कभी फतवा जारी नहीं किया गया। भारतीय दर्शन सब प्रकार के विचारों के पाचन का सामथ्र्य रखता है।

 संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने जम्मू-कश्मीर के चुनावों की रिपोर्टिंग का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारी अभिव्यक्ति में भारत के लोकतंत्र की जीत होनी चाहिए। जबकि देखने में आता है कि जम्मू-कश्मीर का प्रकरण हो, कुलभूषण जाधव का प्रकरण हो या फिर सर्जिकल स्ट्राइक, भारत के कुछ मीडिया संस्थानों ने भारत के प्रतिकूल रिपोर्टिंग की। कुलपति प्रो. सुरेश ने कहा कि हमें संवाद पर पश्चिम के दृष्टिकोण को पढऩे के साथ ही भारत की संचार परंपरा का भी गंभीरता से अध्ययन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दादा माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता एवं साहित्य में हमें भारतीय दृष्टि दिखाई देती है। शिकागो में स्वामी विवेकानंद का ऐतिहासिक व्याख्यान संवाद की भारतीय परंपरा का एक अनूठा उदाहरण है। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता है कि हम लोकतंत्र एवं देश के हित में समाजोन्मुखी संचार व्यवस्था का निर्माण करें।

इससे पूर्व विषय का प्रतिपादन करते हुए विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक एवं कार्यक्रम के संचालक श्री लोकेन्द्र सिंह ने कहा कि हमारी परंपरा में है ‘संवाद का स्वराज’। यह संवाद ही तो है जो समाज को दिशा देता है। हमारे ग्रंथ क्या हैं? संवाद से उपजे दर्शन। एक ने प्रश्न पूछे और दूसरे ने उनके उत्तर दिए और दर्शन की उत्पत्ति हो गई। उन्होंने कहा कि संवाद का उद्देश्य समाधान होना चाहिए। लोक हित होना चाहिए। नये ज्ञान का सृजन होना चाहिए। लेकिन बाह्य विचारों के प्रभाव में आकर संवाद की यह परम्परा अपना हेतु खो बैठी है। उद्देश्यविहीन हो गई है। इस अवसर पर विमोचित पुस्तक ‘संवाद का स्वराज’ की संक्षिप्त जानकारी शोधार्थी अमरेन्द्र आर्य ने दी। स्वागत उद्बोधन डीन अकादमिक प्रो. पी. शशिकला ने दिया। आभार प्रदर्शन कुलसचिव प्रो. अविनाश वाजपेयी ने किया।

कार्यक्रम में भोज मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जयंत सोनवलकर, सांची विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीरजा गुप्ता, अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. खेम सिंह डहेरिया, शुल्क विनियामक आयोग के अध्यक्ष प्रो. रवीन्द्र कान्हेरे, एलएनसीटी के कुलपति प्रो. नरेन्द्र थापक, आरकेडीएफ के कुलपति डॉ. एसके सोहनी एवं आईसेक्ट के प्रतिकुलपति प्रो. अमिताभ सक्सेना सहित अन्य विश्वविद्यालयों के कुलपति, कुलसचिव एवं अन्य अधिकारीगण सहित शहर के गणमान्य नागरिक और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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