श्री ब्रजेश राजपूत को रामनाथ गोयनका अवार्ड
ब्रजेश राजपूत- करेली से निकला कारवां
ये कहानी है मध्यप्रदेश के छोटे से कस्बे करेली से निकले ब्रजेश राजपूत की। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त ब्रजेश राजपूत ने मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में अपने उजले पदचिन्ह छोड़े हैं और उनकी शानदार रिर्पोंटिंग के लिए उन्हें दो बार रामनाथ गोयनका अवार्ड से सम्मानित किया गया।उन्होंने न केवल पत्रकारिता को जिया, बल्कि उसे गहराई से समझा, जाँचा और शब्दों में पिरोया।
ब्रजेश राजपूत की पढ़ाई की शुरुआत करेली की नगरपालिका प्राथमिक शाला से हुई। बाल मंदिर की कक्षाओं से लेकर पाँचवीं तक के सफर में उन्होंने शिक्षा के प्रति रूचि, अनुशासन और उत्सुकता विकसित की। पाँचवीं कक्षा में बोर्ड परीक्षा की तैयारी के लिए ट्यूशन ली और अच्छे अंक प्राप्त किए।इसके बाद जबलपुर के प्रसिद्ध मॉडल स्कूल में एक वर्ष अध्ययन किया, लेकिन पिताजी को बेटे की दूरी पसंद नहीं आई, और वे करेली लौट आए। सातवीं से ग्यारहवीं तक की पढ़ाई करेली के ही शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला में हुई। यही वह दौर था जब वे सामान्य ज्ञान प्रतियोगिताओं, लेखन और खेलकूद में सक्रिय हो गए।
ग्यारहवीं के बाद ब्रजेश सागर विश्वविद्यालय पहुँचे, जहाँ उन्होंने पहले बीएससी (जियोलॉजी) और फिर इतिहास में एमए किया। सागर के विवेक हॉस्टल में रहकर उन्होंने जीवन के नए रंग देखे। यहीं उनकी मुलाकात अभिनेता आशुतोष राणा से हुई, और दोनों ने साथ में पढ़ाई की।पत्रकारिता में प्रवेश ब्रजेश ने केवल डिग्री के लिए नहीं किया था, बल्कि यह एक जुनून था। पत्रकारिता प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त कर वे सागर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में पहुँचे। शिक्षक प्रदीप कृष्णात्रे के मार्गदर्शन में उन्होंने लेखन की बारीकियाँ सीखीं। छात्र जीवन में ही ब्रजेश के लेख जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान जैसे राष्ट्रीय अखबारों में छपने लगे। इसके बाद दिल्ली में यूएनआई और जनसत्ता में इंटर्नशिप की। शिक्षा पूरी करने के बाद भोपाल में दैनिक जागरण में उपसंपादक बने, फिर नईदुनिया में काम किया।
जल्द ही दिल्ली बुलावा आया, जहाँ दैनिक जागरण के नोएडा कार्यालय में तीन वर्ष डेस्क पर कार्य किया। इसी दौरान उन्होंने टेलीविज़न मीडिया की ओर कदम बढ़ाया। एशिया पैसिफिक कम्युनिकेशन एसोसियेट्स में प्रोग्राम बनाकर दूरदर्शन तक पहुँचाना उनका काम था।2000 में सहारा टीवी के मध्यप्रदेश ब्यूरो चीफ़ के तौर पर ब्रजेश राजपूत भोपाल लौटे। यहाँ उन्होंने पूरे प्रदेश में घूमकर रिपोर्टिंग की। इसके बाद 2003 में स्टार न्यूज़ (बाद में एबीपी न्यूज़) में राज्य संवाददाता बने। चुनावों की रिपोर्टिंग, सामाजिक मुद्दों पर रिपोर्ट, और जमीनी कहानियाँ ब्रजेश की पहचान बन गईं।स्टार न्यूज़ में काम करते हुए उन्होंने न सिर्फ राज्य, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति की बारीक समझ विकसित की। 2013 में मुंबई प्रेस क्लब का ‘रेड इंक अवार्ड’ मिला और 2017 में पत्रकारिता का सबसे बड़ा सम्मान ‘रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड’ प्रधानमंत्री आवास घोटाले पर की गई रिपोर्टिंग के लिए प्राप्त हुआ।
पत्रकारिता में पूर्णकालिक रूप से सक्रिय रहते हुए भी ब्रजेश राजपूत ने उच्च शिक्षा नहीं छोड़ी। अपने शिक्षक और पिता की प्रेरणा से उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पीएचडी की। उनका शोध विषय था “हिंदी समाचार चैनलों में ग़ैर समाचार आधारित कार्यक्रमों की लोकप्रियता का अध्ययन”।यह शोध टेलीविज़न पर भूत-प्रेत, ज्योतिष और आध्यात्मिक कार्यक्रमों की सामाजिक स्वीकार्यता पर आधारित था। पत्रकारिता की व्यस्तता के बीच पीएचडी करना एक चुनौती थी, लेकिन ब्रजेश ने यह कर दिखाया।पत्रकारिता अनुभव को लेखन में ढालना ब्रजेश की बड़ी ताकत है। उनकी प्रमुख पुस्तकों में शामिल हैं:
चुनाव, राजनीति और रिपोर्टिंग
- ऑफ द स्क्रीन -जिसे मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी से पुरस्कार मिला
- ऑफ द कैमरा -जिसका अंग्रेज़ी अनुवाद आ चुका है और भूमिका शशि थरूर ने लिखी है
- द एवरेस्ट गर्ल -पर्वतारोही मेघा परमार के जीवन पर आधारित उपन्यास
इसके अतिरिक्त उन्होंने मध्यप्रदेश के तीन विधानसभा चुनावों पर विश्लेषणात्मक किताबें लिखी हैं। इन पुस्तकों में न केवल पत्रकार की नज़र है, बल्कि आमजन की भाषा, दृष्टिकोण और सरोकार भी दिखाई देते हैं।2024 की शुरुआत में ब्रजेश राजपूत ने एबीपी न्यूज़ को अलविदा कहा और एक नए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म विस्तार न्यूज़ की ज़िम्मेदारी संभाली। बतौर प्रधान संपादक, वे एक नए मीडिया संस्थान को आकार देने की चुनौती स्वीकार कर चुके हैं।उनका मानना है कि पत्रकारिता को स्थानीय सरोकारों और जमीनी मुद्दों से जोड़ना आज की आवश्यकता है। विस्तार न्यूज़ इसी उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ रहा है।ब्रजेश राजपूत की जीवन यात्रा केवल व्यक्तिगत सफलता की कहानी नहीं है, यह एक पीढ़ी की प्रेरणा है। एक छोटे शहर से निकलकर राष्ट्रीय स्तर की पत्रकारिता तक पहुँचना, पुरस्कारों से सम्मानित होना और फिर नया संस्थान खड़ा करना ,यह सब अपने आप में ऐतिहासिक है।
वे आज भी कहते हैं — “करेली की माटी और वहाँ के लोगों का आशीर्वाद न होता, तो यह सफर अधूरा रह जाता।”
उनकी कहानी बताती है कि मेहनत, विचार और ईमानदारी के साथ कोई भी पत्रकारिता में शीर्ष पर पहुँच सकता है ,बशर्ते वह अपने गाँव, अपनी मिट्टी को न भूले। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के ऐसे गौरवशाली विद्यार्थियों पर हमें गर्व है।