ब्रजेश राजपूत- करेली से निकला कारवां

ये कहानी है मध्यप्रदेश के छोटे से कस्बे करेली से निकले ब्रजेश राजपूत की। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त ब्रजेश राजपूत ने मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में अपने उजले पदचिन्ह छोड़े हैं और उनकी शानदार रिर्पोंटिंग के लिए उन्हें दो बार रामनाथ गोयनका अवार्ड से सम्मानित किया गया।उन्होंने न केवल पत्रकारिता को जिया, बल्कि उसे गहराई से समझा, जाँचा और शब्दों में पिरोया।

ब्रजेश राजपूत की पढ़ाई की शुरुआत करेली की नगरपालिका प्राथमिक शाला से हुई। बाल मंदिर की कक्षाओं से लेकर पाँचवीं तक के सफर में उन्होंने शिक्षा के प्रति रूचि, अनुशासन और उत्सुकता विकसित की। पाँचवीं कक्षा में बोर्ड परीक्षा की तैयारी के लिए ट्यूशन ली और अच्छे अंक प्राप्त किए। इसके बाद जबलपुर के प्रसिद्ध मॉडल स्कूल में एक वर्ष अध्ययन किया, लेकिन पिताजी को बेटे की दूरी पसंद नहीं आई, और वे करेली लौट आए। सातवीं से ग्यारहवीं तक की पढ़ाई करेली के ही शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला में हुई। यही वह दौर था जब वे सामान्य ज्ञान प्रतियोगिताओं, लेखन और खेलकूद में सक्रिय हो गए।

ग्यारहवीं के बाद ब्रजेश सागर विश्वविद्यालय पहुँचे, जहाँ उन्होंने पहले बीएससी (जियोलॉजी) और फिर इतिहास में एमए किया। सागर के विवेक हॉस्टल में रहकर उन्होंने जीवन के नए रंग देखे। यहीं उनकी मुलाकात अभिनेता आशुतोष राणा से हुई, और दोनों ने साथ में पढ़ाई की।पत्रकारिता में प्रवेश ब्रजेश ने केवल डिग्री के लिए नहीं किया था, बल्कि यह एक जुनून था। पत्रकारिता प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त कर वे सागर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में पहुँचे। शिक्षक प्रदीप कृष्णात्रे के मार्गदर्शन में उन्होंने लेखन की बारीकियाँ सीखीं। छात्र जीवन में ही ब्रजेश के लेख जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान जैसे राष्ट्रीय अखबारों में छपने लगे। इसके बाद दिल्ली में यूएनआई और जनसत्ता में इंटर्नशिप की। शिक्षा पूरी करने के बाद भोपाल में दैनिक जागरण में उपसंपादक बने, फिर नईदुनिया में काम किया।

जल्द ही दिल्ली बुलावा आया, जहाँ दैनिक जागरण के नोएडा कार्यालय में तीन वर्ष डेस्क पर कार्य किया। इसी दौरान उन्होंने टेलीविज़न मीडिया की ओर कदम बढ़ाया। एशिया पैसिफिक कम्युनिकेशन एसोसियेट्स में प्रोग्राम बनाकर दूरदर्शन तक पहुँचाना उनका काम था।2000 में सहारा टीवी के मध्यप्रदेश ब्यूरो चीफ़ के तौर पर ब्रजेश राजपूत भोपाल लौटे। यहाँ उन्होंने पूरे प्रदेश में घूमकर रिपोर्टिंग की। इसके बाद 2003 में स्टार न्यूज़ (बाद में एबीपी न्यूज़) में राज्य संवाददाता बने। चुनावों की रिपोर्टिंग, सामाजिक मुद्दों पर रिपोर्ट, और जमीनी कहानियाँ ब्रजेश की पहचान बन गईं।स्टार न्यूज़ में काम करते हुए उन्होंने न सिर्फ राज्य, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति की बारीक समझ विकसित की। 2013 में मुंबई प्रेस क्लब का ‘रेड इंक अवार्ड’ मिला और 2017 में पत्रकारिता का सबसे बड़ा सम्मान ‘रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड’ प्रधानमंत्री आवास घोटाले पर की गई रिपोर्टिंग के लिए प्राप्त हुआ।

पत्रकारिता में पूर्णकालिक रूप से सक्रिय रहते हुए भी ब्रजेश राजपूत ने उच्च शिक्षा नहीं छोड़ी। अपने शिक्षक और पिता की प्रेरणा से उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पीएचडी की। उनका शोध विषय था “हिंदी समाचार चैनलों में ग़ैर समाचार आधारित कार्यक्रमों की लोकप्रियता का अध्ययन”।यह शोध टेलीविज़न पर भूत-प्रेत, ज्योतिष और आध्यात्मिक कार्यक्रमों की सामाजिक स्वीकार्यता पर आधारित था। पत्रकारिता की व्यस्तता के बीच पीएचडी करना एक चुनौती थी, लेकिन ब्रजेश ने यह कर दिखाया।पत्रकारिता अनुभव को लेखन में ढालना ब्रजेश की बड़ी ताकत है। उनकी प्रमुख पुस्तकों में शामिल हैं:

चुनाव, राजनीति और रिपोर्टिंग

  1. ऑफ द स्क्रीन -जिसे मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी से पुरस्कार मिला
  2. ऑफ द कैमरा -जिसका अंग्रेज़ी अनुवाद आ चुका है और भूमिका शशि थरूर ने लिखी है
  3. द एवरेस्ट गर्ल -पर्वतारोही मेघा परमार के जीवन पर आधारित उपन्यास

इसके अतिरिक्त उन्होंने मध्यप्रदेश के तीन विधानसभा चुनावों पर विश्लेषणात्मक किताबें लिखी हैं। इन पुस्तकों में न केवल पत्रकार की नज़र है, बल्कि आमजन की भाषा, दृष्टिकोण और सरोकार भी दिखाई देते हैं।2024 की शुरुआत में ब्रजेश राजपूत ने एबीपी न्यूज़ को अलविदा कहा और एक नए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म विस्तार न्यूज़ की ज़िम्मेदारी संभाली। बतौर प्रधान संपादक, वे एक नए मीडिया संस्थान को आकार देने की चुनौती स्वीकार कर चुके हैं।उनका मानना है कि पत्रकारिता को स्थानीय सरोकारों और जमीनी मुद्दों से जोड़ना आज की आवश्यकता है। विस्तार न्यूज़ इसी उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ रहा है।ब्रजेश राजपूत की जीवन यात्रा केवल व्यक्तिगत सफलता की कहानी नहीं है, यह एक पीढ़ी की प्रेरणा है। एक छोटे शहर से निकलकर राष्ट्रीय स्तर की पत्रकारिता तक पहुँचना, पुरस्कारों से सम्मानित होना और फिर नया संस्थान खड़ा करना ,यह सब अपने आप में ऐतिहासिक है।

वे आज भी कहते हैं — करेली की माटी और वहाँ के लोगों का आशीर्वाद न होता, तो यह सफर अधूरा रह जाता।”

उनकी कहानी बताती है कि मेहनत, विचार और ईमानदारी के साथ कोई भी पत्रकारिता में शीर्ष पर पहुँच सकता है ,बशर्ते वह अपने गाँव, अपनी मिट्टी को न भूले। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के ऐसे गौरवशाली विद्यार्थियों पर हमें गर्व है।

ब्रजेश राजपूतप्रधान संपादक, विस्तार न्यूज़

श्यामलाल यादव – सच्चाई की खोज में

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के गौरवशाली पूर्व छात्र श्यामलाल यादव (बीजे-1992-1993) इन दिनों ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से जुड़े हैं। आज की पत्रकारिता जहाँ अक्सर सतही खबरों और टीआरपी की होड़ में उलझी नजर आती है, वहीं कुछ पत्रकार ऐसे भी हैं जो तथ्यों की गहराई में जाकर सच्चाई को सामने लाने का जोखिम उठाते हैं। श्यामलाल यादव उन्हीं गिने-चुने पत्रकारों में से एक हैं, जिन्होंने सूचना का अधिकार (RTI) को खोजी पत्रकारिता का धारदार औजार बना दिया।

श्री यादव ने बीते तीन दशकों में पत्रकारिता को केवल खबरों का मंच नहीं, बल्कि जन सरोकारों की खोज और न्याय की आवाज़ बनाया है। श्यामलाल यादव को पत्रकारिता में उत्कृष्ट योगदान के लिए अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। वे खोजी पत्रकारिता श्रेणी में दो बार रामनाथ गोयनका पुरस्कार प्राप्त करने वाले एकमात्र पत्रकार हैं। उन्हें एशियन कॉलेज ऑफ़ जर्नलिज्म (चेन्नई) का उत्कृष्ट पत्रकारिता अवॉर्ड भी दो बार मिल चुका है। यूरोपीय कमीशन का लोरेन्ज़ो नैटली पुरस्कार, एशियन डेवलपमेंट बैंक का डेवलपिंग एशिया जर्नलिज्म अवॉर्ड, नेशनल आरटीआई अवॉर्ड, स्टेट्समैन रूरल रिपोर्टिंग अवॉर्ड और गणेश शंकर विद्यार्थी अवॉर्ड जैसे सम्मानों से नवाजा गया है।

श्यामलाल यादव को भारत में आरटीआई के माध्यम से खोजी पत्रकारिता की नींव रखने वालों में अग्रणी माना जाता है। उन्होंने आरटीआई का उपयोग करते हुए अनेक महत्वपूर्ण रिपोर्ट्स तैयार कीं, जिनमें प्रदूषित नदियों की वास्तविक स्थिति, जन प्रतिनिधियों की विदेश यात्राएं, सांसदों द्वारा अपने रिश्तेदारों की नियुक्तियाँ, फर्जी जर्नल्स, एलआईसी की लैप्स पॉलिसियाँ, राजनेताओं को दी गई मानद डिग्रियाँ, बैंकों द्वारा जनधन खातों में खुद के पैसे डालने जैसे कई महत्वपूर्ण खुलासे शामिल हैं। इन रिपोर्टों का प्रभाव इतना व्यापक था कि न केवल जनजागरूकता में वृद्धि हुई, बल्कि कई बार संस्थाएं और सरकारें भी जवाबदेही के लिए मजबूर हुईं। मार्च 2023 में उनकी एक बड़ी खोज के बाद न्यूयॉर्क के मेट्रोपॉलिटन म्यूज़ियम ऑफ आर्ट ने भारत को 16 दुर्लभ मूर्तियाँ वापस लौटा दीं, यह उनकी खोजी पत्रकारिता का वैश्विक प्रभाव दर्शाता है।

श्री यादव न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय खोजी पत्रकारिता मंचों पर भी एक सशक्त नाम हैं। वे इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (ICIJ) के सदस्य हैं और ‘पैराडाइज़ पेपर्स’, ‘पेंडोरा पेपर्स’, ‘फिनसेन फाइल्स’, ‘उबर फाइल्स’ और ‘हिडन ट्रेज़र्स’ जैसी विश्वविख्यात खोजी परियोजनाओं में अपनी सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं। 30 वर्षों से अधिक के अपने करियर में श्यामलाल यादव ने इंडिया टुडे, अमर उजाला, और जनसत्ता जैसे प्रतिष्ठित समाचार माध्यमों में कार्य किया। वर्ष 2011 से वे द इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े हुए हैं और खोजी पत्रकारिता की उस परंपरा को सशक्त कर रहे हैं, जो सत्य के लिए निर्भीकता की मांग करती है। उनकी पत्रकारिता केवल तथ्यों को उजागर करने तक सीमित नहीं रही, उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर भी सारगर्भित लेखन किया है, जिससे उनकी कलम एक विचारशील दृष्टिकोण की संवाहक बन गई है। उनकी पुस्तक ‘Journalism Through RTI: Information, Investigation, Impact’ (सेज पब्लिकेशन, 2017) एक मील का पत्थर मानी जाती है, जिसे हिंदी और मराठी में भी अनुवादित किया गया है। यह पुस्तक दिसंबर 2024 में Routledge, UK से नए रूप में प्रकाशित हुई है। यह न केवल पत्रकारों के लिए एक पाठ्यपुस्तक की तरह है, बल्कि जनहित में काम करने वाले सभी लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है। उनकी एक अन्य पुस्तक At The Heart Of Power: The Chief Ministers of Uttar Pradesh (Rupa Publications, 2024), जो राजनीतिक तौर पर देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य का चुनावी-राजनीतिक इतिहास है, ख़ासी प्रचलित हुई है और सराही गई है।

उनकी विशेषज्ञता का लोहा वैश्विक स्तर पर भी माना गया है। उन्होंने यूनेस्को, कोलंबिया यूनिवर्सिटी, लंदन यूनिवर्सिटी जैसे मंचों पर पत्रकारिता, सूचना अधिकार और खोजी पत्रकारिता पर व्याख्यान दिए हैं। भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों, पत्रकारिता संस्थानों और सरकारी संगठनों में वे लगातार संवाद और प्रशिक्षण सत्रों का हिस्सा बनते रहते हैं।  सही मायनों में श्यामलाल यादव की पत्रकारिता एक मिशन है। एक ऐसा मिशन जो लोकतंत्र को मजबूत करता है, संस्थाओं को जवाबदेह बनाता है, और समाज में पारदर्शिता की नींव रखता है। उनकी कार्यशैली उन युवाओं के लिए आदर्श है जो पत्रकारिता को महज पेशा नहीं, बल्कि बदलाव का माध्यम मानते हैं। जब सच्चाई की राह कठिन हो, जब सत्ता असहज हो, तब श्यामलाल यादव जैसे पत्रकार समाज के लिए रोशनी की किरण बन जाते हैं। उनका कार्य न केवल पत्रकारिता की गरिमा को बढ़ाने का काम करता है बल्कि नई पत्रकार पीढ़ी के लिए वे प्रेरणाश्रोत भी हैं।

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श्‍यामलाल यादवद इंडियन एक्सप्रेस

स्त्री की कहानियां कहती प्रियंका

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के पत्रकारिता में 2007-2009 की छात्रा रहीं प्रियंका दुबे अब देश की जानी-पहचानी लेखक और पत्रकार हैं। पिछले एक दशक से सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों से जुड़े मुद्दों पर अपनी गंभीर रिर्पोटिंग से उन्होंने अंतराष्ट्रीय स्तर पर खास पहचान बनाई है। जेंडर और सामाजिक न्याय उनके प्रिय विषय हैं। इन मुद्दों पर उनके सतत लेखन से उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा जा चुका है। अब वे नई पीढ़ी की सुपरिचित कवि और गद्यकार हैं।

भारतीय पत्रकारिता का सुपरिचित और सम्मानित नाम तो वे हैं ही। हिंदी और अंग्रेजी में अपने सतत लेखन ने उन्हें बहुत जल्दी बौद्धिक वर्गों के बीच स्थापित कर दिया है। अपने एक लेख में वे लिखती हैं-प्रसिद्धि के साथ एक मज़े की बात यह है कि जब तक प्रत्यय की तरह इसके साथ विडंबना नहीं जुड़ती, तब तक इसके छिपे हुए अर्थ हमारे सामने पूरी तरह उजागर नहीं होते। लेकिन इससे भी ज़्यादा मज़े की बात शायद यही हो सकती कि ज़्यादातर मामलों में विडंबना शोहरत का पीछा करने में ज़्यादा देर भी नहीं लगाती।

अपनी खास तरह की रिर्पोटिंग से पत्रकारिता में पहचान बना चुकी प्रियंका भोपाल की रहने वाली हैं। इन दिनों वे कभी हिमालय की गोद में और कभी मध्यप्रदेश के भोपाल या इंदौर में होती हैं। उनकी किताब ‘No Nation for Women -Reportage on Rape from India, the World’s Largest Democracy’  ने उन्हें लेखकों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। इस किताब ने प्रियंका को खास पहचान दी। यह उनकी पहली किताब है और इसे 2019 में ही इसे शक्ति भट्ट फ़र्स्ट बुक प्राइज़, टाटा लिटेरेचर लाइव अवार्ड और प्रभा खेतान विमेन्स वोईसे अवार्ड के लिए शॉर्ट लिस्ट लिया गया था। जाहिर तौर पर पहली किताब का इतना जोरदार स्वागत बताता है कि प्रियंका को लंबा रास्ता तय करना है। लम्बे समय से कविताएँ लिखकर संकोचवश छिपाती रहने वाली प्रियंका का दिल साहित्य में बसता है।

अपने कृतित्व के प्रियंका जो सम्मान मिले हैं उनमें 2019 का चमेली देवी जैन राष्ट्रीय पुरस्कार सबसे खास है। जो जर्नलिस्ट आफ द इयर जैसा है। बहुत कम आयु में यह सम्मान पाकर उन्होंने खुद का विशेष होना साबित किया है। इसके अलावा2015 का नाइट इंटरनेशनल जर्नलिज्म अवार्ड, 2014 का कर्ट शोर्क इंटरनैशनल अवार्ड, 2013 का रेड इंक अवार्ड, 2012 का भारतीय प्रेस परिषद का राष्ट्रीय पुरस्कार और 2011 का रामनाथ गोयनका अवार्ड शामिल हैं।

उनकी रिर्पोट 2014 के ‘थामसन फाउंडेशन यंग जर्नलिस्ट फ्राम डिवेलपिंग वर्ल्ड’ और 2013 के ‘जर्मन डेवलपमेंट मीडिया अवार्ड’ में भी चुनी गयीं। स्त्री मुद्दों पर उनकी सतत रिपोर्टिंग के लिए उन्हें तीन बार लाड़ली मीडिया पुरस्कार भी दिया जा चुका है। 2016 में वह लंदन की वेस्टमिनिस्टर यूनिवर्सिटी में चिवनिंग फेलो थीं और 2015 की गर्मियों में भारत के संगम हाउस में राइटर-इन-रेसीडेंस। 2015 में ही सामाजिक मुद्दों पर उनके काम को इंटरनेशनल विमन मीडिया फ़ाउंडेशन का ‘होवर्ड जी बफेट ग्रांट’ घोषित हुआ था। लम्बे समय से कविताएँ लिखकर संकोचवश छिपाती रहने वाली प्रियंका का दिल साहित्य में बसता है। साहित्य के विविध मंचों पर उनकी कविताएं और गद्य लगातार पाठकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। एक कविता में वे कहती हैं-

तुम्हारे साथ इतनी सुखी हूँ मैं
कि अब मेरे इस सुख से भी
ग्लानि का तीर झाँकने लगा है…”

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प्रियंका दुबेलेखक और पत्रकार

श्री बृजेश सिंह को रामनाथ गोयनका अवार्ड

खबरों से बनी पहचान – बृजेश सिंह

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभाग में एमए (जनसंचार) (2007-2009) के छात्र रहे श्री बृजेश सिंह ने पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत कम समय में खास पहचान बनाई है। बलिया (उप्र) के एक गांव में जन्में और पिछले 16 साल से प्रिंट और डिजिटल मीडिया में सक्रिय रहे बृजेश सिंह को दो बार रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। 2012 में उन्हें जम्मू-कश्मीर के शरणार्थियों की नागरिकता के मुद्दे पर और 2014 में कश्मीरी आतंकवादियों पर उनकी खोजपरक रिपोर्ट पर यह सम्मान मिला। उन्हें ‘तरूण सहरावत अवार्ड फार जर्नलिज्म आफ कैरेज’ से भी सम्मानित किया जा चुका है। इस कहानी में उन्होंने रेलवे भर्तियों में होने वाले भ्रष्टाचार को उजागर किया था।

पत्रकारिता को जिम्मेदारी भरा दायित्व समझते हुए बृजेश ने जो किया है, उसकी मिसाल कम मिलेगी। इसके अलावा संपादकीय टीम का कुशल नेतृत्व उनकी विशेषता है। बृजेश ने ‘तहलका’ हिंदी के संपादक रहते हुए पत्रिका को बहुत खास तेवर दिए और उनकी स्वयं की समाचार कथाएं पठनीयता में सर्वोच्च रहीं। केंद्र में अपने पाठकों को रखना और सत्ता से आलोचनात्मक विमर्श का रिश्ता उनकी पत्रकारिता की पहचान बन गया। उनके संपादन में तहलका एक ऐसा मंच बना जिसे हिंदी क्षेत्र में बहुत सराहा गया। तहलका के तेवर उन दिनों खास थे। तहलका में वे एक संवाददाता की तरह शामिल हुए और अपनी खबरों से जल्दी ही न्यूज रुम में उनकी खास पहचान बन गयी। उनके संपादन में तहलका अपनी संपादकीय श्रेष्ठता के लिए जाना गया। इसके साथ ही उनके संपादन काल में तहलका की पांच समाचार कथाओं को रामनाथ गोयनका अवार्ड्स मिले। किसी भी संपादक के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। हिंदी तहलका ने बृजेश के संपादन में खोजी और सामाजिक संदर्भों पर रिपोर्ट में मानक स्थापित किए।

बृजेश ‘तहलका’ के बाद ‘वायर’ हिंदी के संस्थापक संपादक बने और यह पूरा हिंदी प्लेटफार्म उनकी अवधारणा के आधार पर लांच किया गया। अपने अनुभवों और तेवरों से बृजेश ने इस आनलाईन प्लेटफार्म को भी बहुत प्रभावी स्वरूप प्रदान कर दिया। उनके कार्यकाल में हिंदी वायर में छपी समाचार कथाओं के लिए उनके अनेक पत्रकारों को रामनाथ गोयनका अवार्ड, रेड इंक अवार्ड,लाडली मीडिया अवार्ड्स भी मिले।

उनकी चर्चित रिपोर्ट्स पर नजर डालें  तो कश्मीर संकट पर उनकी गंभीर रिपोर्टिंग, शरणार्थिर्यों के मुद्दे भारतीय खुफियां एजेंसियों पर लिखी समाचार कथाओं के अलावा राजनीतिक, सामाजिक, विकास, मानवाधिकार के संदर्भों पर उनका लेखन बहुत चर्चा में रहा। उनकी भारतीय जासूसों पर छपी समाचार कथा को एपिक चैनल पर भी डाक्यूमेंट्री के रूप में प्रदर्शित किया गया। बृजेश सिंह की समाचार कथाएं बताती हैं कि कैसे मीडिया के माध्यम से जनमुद्दों पर कलम चलाई जा सकती है। उनकी समाचार कथाएं खोजपूर्ण होने के साथ नए विजन और प्रस्तुति की जीवंत गवाही हैं। पत्रिका संपादन और उसकी प्रस्तुति विशेषज्ञता का विषय है तो डिजिटल दुनिया एक अलग कौशल की मांग करती है। बृजेश ने दोनों को साधकर जो काम किया है, उसके चलते ही आप रामनाथ गोयनका अवार्ड से दो बार सम्मानित हुए। सामान्य गांव से निकलकर मिलने वाली ऐसी सफलता की कहानियां पत्रकारिता और समाज दोनों के लिए उदाहरण हैं।

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बृजेश सिंह‘वायर’ हिंदी

Sibu Kumar Tripathi (BAMC 2012-15)

Sibu Kumar Tripathi is a prominent Science Editor at India Today Digital, recognized for his exceptional contributions to journalism, particularly in the fields of science, environment, and health. Recently, he was honoured with the prestigious Ramnath Goenka Excellence in Journalism Award for his impactful reporting on the land subsidence crisis in Joshimath, Uttarakhand. His report, titled “The Curse of Joshimath,” highlighted the urgent need for sustainable development practices in geologically sensitive areas.

A graduate of Makhanlal Chaturvedi University in Bhopal, Sibu furthered his studies at the Indian Institute of Mass Communication in Delhi and went on to complete his Masters from Kurukshetra University.

He also holds a certificate from the United Nations in critical appraisal skills for health reporting. His academic background laid a solid foundation for his career in journalism, which began with roles at various media outlets before joining India Today Group.

Sibu’s career has spanned multiple facets of journalism; he has previously covered political issues and reported on the Delhi government. His versatility as a journalist is complemented by his passion for science and space exploration, often sharing insights on these topics through his writing.

In addition to the Ramnath Goenka Award, he is a two-time recipient of the WAN-IFRA Digital Media Awards, showing his excellence in digital journalism. His work not only informs but also engages readers on critical issues affecting society and the environment.

His coverage of the Chandrayaan-3 mission, Aditya L-1 mission, Ladakh’s Dark Sky Reserve, Kodaikanal Solar Observatory, the Samudrayaan project has been repeatedly praised by the scientific community.

Outside of his professional life, he enjoys travelling, cooking, and exploring new genres of books and films. His diverse interests reflect his curiosity about the world around him and his commitment to lifelong learning.

As he continues to lead the science team at India Today Digital, Sibu Kumar Tripathi remains a vital voice in contemporary journalism, advocating for informed discussions on pressing scientific issues.

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सिबु कुमार त्रिपाठीप्रमुख विज्ञान संपादक, इंडिया टुडे डिजिटल

अनुराग द्वारी (BAMC 1999-2002)

श्री अनुराग द्वारी वर्तमान में NDTV के मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ (MPCG) के स्थानीय संपादक के रूप में कार्यरत हैं।

शिक्षा और प्रारंभिक जीवन:

अनुराग द्वारी ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की और इसके बाद उन्होंने एजेके मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर (AJKMCRC), जामिया मिल्लिया इस्लामिया से डेवलपमेंट कम्युनिकेशन में पोस्टग्रेजुएशन किया। उनकी शिक्षा और शुरुआती प्रशिक्षण ने उनकी रिपोर्टिंग शैली को और प्रभावी बनाया।

पत्रकारिता करियर और उपलब्धियाँ:

अनुराग द्वारी ने अपने करियर की शुरुआत पीटीआई (प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया) से की और इसके बाद स्टार न्यूज़ (अब एबीपी न्यूज़) तथा बीबीसी में भी काम किया। NDTV में रहते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण और प्रभावशाली रिपोर्टिंग की हैं, जिनमें सामाजिक मुद्दे, किसानों की समस्याएँ, राजनीतिक घटनाक्रम और सरकारी नीतियों का मूल्यांकन शामिल है।

उनकी रिपोर्टिंग की सबसे बड़ी विशेषता उनकी ग्राउंड रिपोर्टिंग है। वे मुद्दों की तह तक जाकर सटीक और तथ्यात्मक खबरें प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने वाली राजनीतिक हलचल, भ्रष्टाचार, किसानों की दुर्दशा, आदिवासी अधिकारों और प्रशासनिक अनियमितताओं पर उनकी बेबाक और तथ्यात्मक रिपोर्टिंग जनता को वास्तविकता से अवगत कराती है।

सम्मान और पुरस्कार:

अनुराग द्वारी की निडर और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले हैं: 

  • रेड इंक अवॉर्ड – पत्रकारिता में उत्कृष्टता और ज़मीनी रिपोर्टिंग के लिए 
  • रामनाथ गोयनका अवॉर्ड – बेहतरीन खोजी पत्रकारिता और साहसिक रिपोर्टिंग के लिए 
  • लोकजतन अवॉर्ड – जनहित और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी पत्रकारिता के लिए 

निजी रुचियाँ और प्रेरणा:

अनुराग द्वारी राष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी रह चुके हैं और शास्त्रीय संगीत के गहरे प्रेमी हैं। इसके अलावा, उनका जुड़ाव थिएटर से भी रहा है। भोपाल में विभा मिश्रा, सच्चिदानंद जोशी और राजकमल नायक जैसे प्रसिद्ध थिएटर गुरुओं के साथ उन्होंने रंगमंच से जुड़ा काम किया है।

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अनुराग द्वारीस्थानीय संपादक, NDTV मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ (MPCG)

विष्णुकांत तिवारी (MAMC 2020-22)

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के अमवा कोठार गांव से आने वाले श्री विष्णुकांत तिवारी को पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए लगातार दूसरी बार “रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवॉर्ड” से सम्मानित किया गया।

1999 में जन्मे विष्णुकांत तिवारी ने अपनी स्कूली शिक्षा जबलपुर, विशाखापट्टनम और रायपुर में पूरी की. बाद में उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई की।

परिवार की तीन पीढ़ियों के सेना में कार्यरत होने के कारण इनकी पहली पसन्द भी सेना में जाना ही था. लेकिन किस्मत उन्हें पत्रकारिता में ले आई। इनकी पत्रकारिता की शुरुआत कोविड-19 महामारी के दौरान हुई, जब उन्होंने स्वतंत्र पत्रकार के रूप में ग्राउंड रिपोर्ट करना शुरू किया. शुरुआती दिनों में छत्तीसगढ़ के जनजातीय इलाकों से जुड़ी कहानियों पर काम करने के बाद ये महज 22 साल की उम्र में द क्विंट के मध्यप्रदेश – छत्तीसगढ़ संवाददाता नियुक्त हुए।

द क्विंट के साथ अपने कार्यकाल के दौरान विष्णुकांत ने आदिवासी समाज, नक्सलवाद, जातीय भेदभाव, सामाजिक कुरीतियों और ग्रामीण भारत के संघर्षों को केंद्र में रखकर कई महत्वपूर्ण रिपोर्ट्स तैयार कीं।

द क्विंट के लिए की गई उनकी शुरुआती डॉक्यूमेंट्री में से एक “बस्तर के आदिवासी सुरक्षाबलों का विरोध क्यों करते हैं” के लिए साल 2024 में उन्हें रामनाथ गोयनका सम्मान से नवाज़ा गया।

साल 2022 में मध्य प्रदेश के खरगोन दंगों पर तटस्थ रिपोर्टिंग के बाद इन्हें व्यापक पहचान मिली।

2023 में इन्होंने झारखंड में “डायन” प्रथा के कारण महिलाओं पर होने वाली हिंसा और उनकी हत्याओं पर एक डॉक्यूमेंट्री सीरीज बनाई। तीन हिस्सों की इस डॉक्यूमेंट्री के लिए उन्हें 2025 में दूसरी बार रामनाथ गोयनका पुरस्कार मिला।

वर्तमान में विष्णुकांत बीबीसी हिंदी के सेंट्रल इंडिया संवाददाता के रूप में कार्यरत हैं। उनकी रिपोर्टिंग का फोकस मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत भारत के मध्य क्षेत्र के जनजातीय और ग्रामीण क्षेत्रों के मुद्दों, जातीय राजनीति और सामाजिक संघर्षों पर रहता है।

कम समय में अपनी सटीक और गहन रिपोर्टिंग के कारण विष्णुकांत तिवारी ने पत्रकारिता जगत में एक अलग पहचान बनाई है। उनकी कोशिश रहती है कि वे हाशिए पर खड़े समुदायों की कहानियों को प्रमुखता से सामने ला सकें।

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विष्णुकांत तिवारीबीबीसी, हिंदी सेंट्रल इंडिया

The Best place to learn Journalism… Read More

Krishna Mohan Mishra Ass. Editor, ZEE News

माखनलाल विश्वविद्यालय देश का पहला पत्रकारिता शिक्षण संस्थान होने का गौरव रखता है। इस गुरुकुल का पत्रकारिता जगत में लंबा और आदरणीय इतिहास रहा है। ये अपने आप मे इसलिए भी अनूठा है क्यूंकि यहां जो आप सीखते हैं वो प्रोफेशनल लाइफ में भी लंबे समय तक कारगर सिद्ध होता है। प्रैक्टिकल लर्निंग पैटर्न यहां की सबसे बड़ी खूबी है।

Anuj KhareEditor, dainikbhaskar.com & divyamarathi.com

हम सभी “एक भारतीय आत्मा”  दादा माखनलाल चतुर्वेदी के अंश हैं। आप प्रोफेशनल और तकनीकी शिक्षा तो देश, दुनिया में कहीं से भी हासिल कर सकते हैं लेकिन निर्भीक पत्रकारिता की वो ऊर्जा वो प्रेरणा कहां से लाएंगे जो हमें यहां सिखायी जाती है।

Raghuveer RichhariyaSenior Producer, ABP News