कुलपति संदेश

मेरा मानना है कि किसी भी विश्वविद्यालय या शैक्षणिक संस्थान के भूतपूर्व विद्यार्थी (एलुमनाई) उनकी असल ताकत होते हैं। विद्यार्थियों और विश्वविद्यालय के मध्य में जो संबंध होता है, वह अध्ययनकाल तक सीमित नहीं होता बल्कि आजीवन बना रहता है। विद्यार्थी पहली बार अपने घर और मां-पिता के संरक्षण से बाहर निकलकर, स्कूली शिक्षा के बाद विश्वविद्यालय में जब प्रवेश लेता है, त

ब उसकी युवा अवस्था की भी शुरुआत होती है। उसे लगता है कि वह स्कूली बंधन से निकलकर खुले आकाश में श्वांस ले रहा है। उसमें जोश होता है, कुछ सपने होते हैं। इन सबके साथ वह विश्वविद्यालय में पहला कदम रखता है। सभी विद्यार्थियों के विश्वविद्यालय में प्रवेश के साथ ही यहाँ के कुछ यादगार पल वे संजोने लगते हैं। जब अपनी पढ़ाई पूरी कर विश्वविद्यालय से वे जाते हैं तब उनके पास स्मृतियों का खजाना होता है। विश्वविद्यालय के बाद के जीवन में शायद ही कोई स्कूल को इतना याद नहीं रखता है जितना कि वह कॉलेज एवं छात्रावास में जहां वे सीखते हैं, उसको याद रखते हैं।

सभी विद्यार्थी सिर्फ क्लास रूम में ही नहीं सीखते बल्कि वे विश्वविद्यालय परिसर के वातावरण से भी सीखते हैं। यहाँ वह समावेशी बनते हैं। क्योंकि विश्वविद्यालय में विभिन्न पृष्ठभूमि से छात्र आते हैं। वे विविध वर्गों, जातियों, महजबों के होते हैं। अपने साथ अपने क्षेत्रों से परिवार समाज-धर्म-संस्कृति और स्कूल आदि से बहुत सारे संस्कार, शिक्षा और अनुभवों को ग्रहण कर आते हैं। उनके अपने विचार-भाव और स्वभाव होते हैं। इस तरह उनमें विविधता होती है। इन सबको वे आपस में बांटते हैं। घुलते-मिलते हैं। इस प्रकार वे सभी एक-दूसरे से कुछ सीखते और बहुत कुछ सिखाते भी हैं। ये अविस्मरणीय पल होते हैं। विद्यार्थी इन पलों को जाने-अंजाने अपने चेतन-अवचेतन में संजो लेते हैं । वे सभी समावेशी वातावरण सृजन करते हैं। श्रेष्ठ वातावरण अगली पीढ़ी के लिए विरासत में छोड़ जाते हैं। आज इस वातावरण और नए-पुराने विद्यार्थियों के बीच  ज्यादा मजबूत करने की जरूरत है।

विश्वविद्यालय के शिक्षकों का भी मन करता है कि उन छात्रों को फिर से मिलें जिन्हें उन्होंने पढ़ाया है। विद्यार्थियों के मन में भी रहता है कि जिन्होंने मुझे लिखना सिखाया, कैमरा पकड़ना सिखाया, जिनके कारण आज हम छात्र पूरे देश भर में बड़े-बड़े पदों पर बड़े-बड़े संस्थाओं में काम कर रहे हैं, उन शिक्षकों के साथ जुड़ें।  पूर्व छात्र प्रकोष्ठ (एलुमनाई सेल) ही इसके लिए एक बहुत ही सशक्त माध्यम बन सकता हैं। कई संस्थानों में एलुमनाई एसोसिएशन हैं, लेकिन हमारे यहां तीस वर्ष की यात्रा में भी इसके लिए कुछ ठोस परिणाम नहीं निकल सका था। विद्यार्थियों ने जरूर कुछ प्रयास सोशल मीडिया के माध्यम से किए हैं, किन्तु संस्थागत किसी प्रकार की कोई व्यवस्था कभी नहीं की गई।

हमारे विश्वविद्यालय के इतिहास में इस वर्ष यह पहली बार हुआ कि ऐसा कारगर प्रयास किया गया हैं। गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 2021 के पावन दिवस पर भूतपूर्व छात्र प्रकोष्ठ (एलुमनाई सेल) का उद्घाटन किया गया है। भूतपूर्व छात्र प्रकोष्ठ (एलुमनाई सेल) का मुख्य उद्देश्य यह है कि बीते तीस वर्षों में जितने भी लोगों ने भी अब तक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के भोपाल, खंडवा, नोएडा, रीवा परिसरा से अध्ययन किया  है वे देश-विदेश में कहीं भी हों उन्हें एक संस्थागत तरीके से हम जोड़ना चाहते हैं। हमें विश्वास है कि इसका जो लाभ है वह दोनों तरफ से होगा। छात्रों को भी आपस में अपने सभी सहपाठियों, कनिष्ठ (जूनियर्स) और वरिष्ठ (सीनियर्स) से जुड़ने का अवसर मिलेगा। विश्वविद्यालय, यह भी चाहेगा कि माहौल ऐसा बने, जिससे सभी विद्यार्थी अपने जीवन में कठिन पलों में भी एक दूसरे का साथ दे सकें। इसके साथ ही गर्व की अनुभूति (सेंस ऑफ प्राइड) विश्वविद्यालय को लेकर उनके मन में हो। सद्भाव उनके मन में हो। हमारे कई शिक्षक भी यहीं के भूतपूर्व छात्र (एलुमनाई) हैं। फलतः विश्वविद्यालय, विद्यार्थियों और शिक्षकों के संबंधों को मजबूती मिलेगी। यह मजबूती विश्वविद्यालय की प्रगति के नए सौपान रचेगी। विश्वविद्यालय के परिसरों का विस्तार होगा। मुझे यह पूर्ण विश्वास है कि यह प्रयास जरूर सफल होग। इससे सभी छात्रों को भी प्रोत्साहन मिलेगा। दरअसल पूर्व छात्रों से सबका आपसी जुड़ाव और उनकी चिंता हो, यही इस प्रकोष्ठ का असली उद्देश्य है।

प्रो. के.जी सुरेश
कुलपति