पत्रकारिता विश्वविद्यालय में विश्व फोटोग्राफी दिवस पर प्रदर्शनी एवं व्याख्यान

पत्रकारिता विश्वविद्यालय में विश्व फोटोग्राफी दिवस पर प्रदर्शनी एवं व्याख्यान

फोटोग्राफर को कैमरा रखने में शरमाना नहीं चाहिए – जैमिनी

फोटोग्राफी बहुत सम्मान का काम है- चौरसिया

भोपाल, 19 अगस्‍त, 2019: फोटो का मतलब है प्रकाश। प्रकाश के साथ जो खिलवाड़ किया जाता है, वही फोटोग्राफी है। एक फोटोग्राफर को कैमरा रखने में कभी भी शरमाना नहीं चाहिए। विश्व फोटोग्राफी दिवस पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्टीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यकम में ये बात वरिष्ठ छायाकार श्री कमलेश जैमिनी ने कही। इलेक्टॉनिक मीडिया विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यकम में श्री जैमिनी ने कहा कि फोटोग्राफी में एंगल क्या हो, कंपोज़ीशन क्या हो, आज ये बहुत जरुरी हो गया है। प्रेस फोटोग्राफी पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि यदि आप एक प्रेस फोटोग्राफर बनना चाहते हैं तो आपको पता होना चाहिए कि आप किस कार्यकम में गये हैं, वह किस पर आधारित है, एवं उसके मुख्य वक्ता कौन हैं।  इस मौके पर विश्वविद्यालय के कुलपति श्री दीपक तिवारी ने भी विद्यार्थियों के द्वारा लिए गये फोटोग्राफ को देखा एवं उनकी सराहना की।

मुख्य वक्ता के रुप कैमरामैन सह जनसंपर्क अधिकारी गोविंद चौरसिया ने कहा कि फोटो एक ऐसी कला है जिसे अनपढ़ भी पढ़ सकता है और कुछ फोटो में तो कैप्शन भी देने की जरुरत नहीं होती है। फोटोग्राफी को बहुत ही सम्मान का पेशा बताते हुए उन्होंने कहा कि तस्वीरें खुद बोलती हैं। चौरसिया ने कहा कि कई कलाकारों को फिल्म एक्टर बनने का मौका भी फोटोग्राफी से मिला। इस कार्यकम में एक फोटोग्राफी प्रतियोगिता भी आयोजित की गई थी, जिसका टॉपिक “आफ्टर द रैन एवं सेडो इन द सिटी” रखा गया था। पीजी एवं यूजी लेवल पर आयोजित इस प्रतियोगिता में कुल 45 फोटो को शार्टलिस्ट किया गया था, जिनकी प्रदर्शनी भी लगाई गई। स्नातक स्तर पर इलेक्ट्रोनिक मीडिया विभाग के यासिर मुस्तबा पहले स्थान पर जबकि दूसरे स्थान पर कर्मवीर परिसर खंडवा से आदर्श शिवम, तीसरे स्थान पर न्यू मीडिया टैक्नोलॉजी विभाग से आदिल अली रहे। स्नातकोत्तर स्तर पर पहले स्थान पर जनसंपर्क विभाग में फिल्म प्रोडक्शन के सूर्यान्श रघुवंशी, दूसरे स्थान पर पत्रकारिता विभाग से रावेन्द्र सिंह एवं तीसरे स्थान पर दीपांशु सिंह रहे। कार्यकम में डीन अकादमिक डॉ. पवित्र श्रीवास्तव एवं जनसंचार विभाग के अध्यक्ष  डॉ. संजीव गुप्ता मौजूद रहे। कार्यकम का संचालन विभाग की विद्यार्थी लीसा गंगवानी ने किया।

पत्रकारिता विश्वविद्यालय में विश्व फोटोग्राफी दिवस पर प्रदर्शनी एवं व्याख्यान फोटोग्राफर को कैमरा रखने में शरमाना नहीं चाहिए – जैमिनी फोटोग्राफी बहुत सम्मान का काम है- चौरसिया भोपाल, 19 अगस्‍त, 2019: फोटो का मतलब है प्रकाश। प्रकाश के साथ जो खिलवाड़ किया जाता है, वही फोटोग्राफी है। एक फोटोग्राफर को कैमरा रखने में कभी भी…

छायावाद की प्रेरणा है ‘गीतांजलि’

छायावाद की प्रेरणा है ‘गीतांजलि’

गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर स्मृति दिवस पर पत्रकारिता विश्वविद्यालय में विशेष व्याख्यान का आयोजन

भोपाल, 07 अगस्‍त, 2019: माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से 7 अगस्त को गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर स्मृति दिवस पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस अवसर पर गाँधीवादी विचारक प्रो. अरुण त्रिपाठी ने गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अपने विचार रखते हुए कहा कि भारतीय दर्शन, चिंतन, कला, संस्कृति, संगीत और साहित्य को गुरुदेव ने एक नया आयाम दिया। गुरुदेव के चिंतन में हमें एक व्यापक फलक मिलता है। उनकी विश्व प्रसिद्ध रचना गीतांजलि है। छायावाद और छायावादी कवियों की प्रेरणा भी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर एवं गीतांजलि है।

पत्रकारिता के विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए प्रो. त्रिपाठी ने गुरुदेव और महात्मा गांधी के आपसी संबंधों और उनकी आपसी समझ पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गुरुदेव ने गांधीजी के असहयोग आंदोलन और विदेशी कपड़ों की होली जलाने के प्रति अपनी असहमति प्रकट की थी। अन्य अवसरों पर भी अपनी मतभिन्नता प्रकट की। किंतु, उनका आपसी संवाद और व्यवहार हमें बताता है कि विचारों में असहमति के बाद भी हम कैसे एक-दूसरे का सम्मान कर सकते हैं। प्रो. त्रिपाठी ने इस अवसर पर कहा कि आज श्रीरामचरितमानस के रचयिता संत तुलसीदास की जयंती भी है। उन्होंने कहा था- ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।’ आज हमने उनकी इस सीख को उलट कर रख दिया है। तुलसीदास की यह शिक्षा आज प्रासंगिक है।

इस अवसर पर न्यूज़ क्लिक के संपादक डॉ. प्रबीर पुरकायस्थ भी उपस्थित थे। उन्होंने ‘चेंजिंग ट्रेंड्स इन जर्नलिज्म एंड फ्यूचर ऑफ़ डिजिटल मीडिया’ पर अपना व्यख्यान दिया। डॉ. पुरकायस्थ ने कहा कि इंटरनेट ने संचार माध्यमों के एकाधिकार को खत्म कर दिया है। पहले की तुलना में आज मीडिया अधिक लोकतांत्रिक हुआ है। किंतु, इंटरनेट आधारित मीडिया प्लेटफॉर्म की खराबी है कि इस पर फेक न्यूज अधिक तेजी से फैलती है। आज जबकि फेक न्यूज का बोलबाला है, तब कम्युनिकेशन की बड़ी भूमिका है कि वह सच्चाई और विवेक की पुनर्स्थापना करे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलाधिसचिव डॉ. श्रीकांत सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थी राघवेन्द्र प्रताप ने किया।

छायावाद की प्रेरणा है ‘गीतांजलि’ गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर स्मृति दिवस पर पत्रकारिता विश्वविद्यालय में विशेष व्याख्यान का आयोजन भोपाल, 07 अगस्‍त, 2019: माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से 7 अगस्त को गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर स्मृति दिवस पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस अवसर पर गाँधीवादी विचारक प्रो.…

समय की पदचाप सुनते हैं बड़े रचनाकार : डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव

समय की पदचाप सुनते हैं बड़े रचनाकार : डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव

मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर पत्रकारिता विश्वविद्यालय में आयोजन, साहित्य परिषद का गठन

भोपाल, 31 जुलाई, 2019: सृजनात्मक साहित्य के साथ प्रेमचंद ने उस समय की पत्रकारिता को भी दिशा दी थी। यदि कोई रचना कल्पना में तैर रही है और वह यथार्थ पर नहीं आती है, तो वह लम्बे समय तक जीवित नहीं रहती है। प्रेमचंद की रचनाएं अपने समय के यथार्थ से जुड़ी रही हैं। जो रचनाकार अपने समय की पदचाप और आने वाले समय की पदचाप को नहीं सुनते हैं, वह बड़ी रचना नहीं लिख सकते हैं और न ही बड़े रचनाकार बनते हैं। यह विचार वरिष्ठ लेखक डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव ने प्रखर साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए। कार्यक्रम का आयोजन प्रगतिशील लेखक संघ और विश्वविद्यालय के मुंशी प्रेमचंद साहित्य परिषद के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।

डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि कोई भी रचनाकार दुनिया को उसी रूप में ग्रहण नहीं करते हैं, जैसी वह उन्हें मिली होती है। रचनाकार अपने रचनाधर्म का पालन करते हुए दुनिया को बदलने का प्रयास करता है। रचना कर्म नितांत व्यक्तिगत कर्म नहीं है, बल्कि यह सामाजिक कर्म है। प्रेमचंद ने घोषणा की थी कि साहित्य मनोरंजन की वस्तु नहीं है। मनोरंजन किसी भी कला का अंतिम लक्ष्य नहीं होता। डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि भारत का स्वाधीनता आंदोलन सबसे बड़ा जनांदोलन था। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चले इस जनांदोलन ने समूची दुनिया को प्रभावित किया। प्रेमचंद की एक कहानी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अपनी मातृभूमि के लिए शहीद होने वाले व्यक्ति के रक्त की बूंद को प्रेमचंद ने सबसे अनमोल बताया था। डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में उनके समय की पीड़ा दिखाई पड़ती है। प्रेमचंद का साहित्य किसानों की करुण गाथा का महाकाव्य है। मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य के साथ पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। हंस का संपादन करते हुए उन्होंने अनेक संपादकीय लिखे। सांप्रदायिकता पर चोट करते हुए उन्होंने लिखा था कि सांप्रदायिकता सदैव संस्कृति की दुहाई देकर आती है, उसे शायद अपने वास्तविक रूप में निकलने में लज्जा आती है। पूँजीवादी व्यवस्था के खतरों की ओर भी प्रेमचंद ने बहुत अधिक लिखा था। उन्होंने लिखा था कि पूँजीवादी व्यवस्था में मानवीय संबंध एक तरफ रख दिए जाते हैं। डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि प्रेमचंद ने सृजनात्मक साहित्य के साथ प्रेमचंद ने उस समय की पत्रकारिता को भी सार्थक दिशा दी। पत्रकारिता और कथा लेखन में बहुत समानता है।

‘समय के साखी’ की संपादक डॉ. आरती ने कहा कि आजादी की लड़ाई के योद्धा के रूप में भी प्रेमचंद को याद किया जाता है। प्रेमचंद एक बार गांधीजी की सभा में गए थे, वहाँ से उन्होंने लेखन को आजादी की लड़ाई को अपना हथियार बनाने का संकल्प ले लिया था। लेखन के प्रति प्रेमचंद की प्रतिबद्धता को बताते हुए डॉ. आरती ने कहा कि वह कहते थे- ‘मैं एक मजदूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं है।’ प्रेमचंद कहते थे कि कहानी का यह मॉडल हमने यूरोप से लिया है, लेकिन हमें इसमें भारतीय आत्मा की स्थापना करना है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलाधिसचिव डॉ. श्रीकांत सिंह ने कहा कि प्रेमचंद ने हंस, माधुरी, मर्यादा और जागरण का संपादन किया था। उन्होंने स्त्री समानता के पक्ष में लगातार लेखन किया। डॉ. श्रीकांत ने कहा कि प्रेमचंद ने किसानों की समस्याओं पर जितना लिखा है, संभवत: उतना किसी और पत्रकार ने नहीं लिखा होगा। इस अवसर पर उन्होंने विश्वविद्यालय में मुंशी प्रेमचंद साहित्य परिषद की स्थापना की घोषणा की। परिषद में प्रो. संजय द्विवेदी को संयोजक और सहायक प्राध्यापक अरुण खोबरे को सह-संयोजक की जिम्मेदारी दी गई है। कार्यक्रम में विद्यार्थी सुमैया खान ने ‘जीवन की प्राणशक्ति’ और समक्ष जैन ने ‘ईदगाह’ कहानी का पाठ किया। धन्यवाद ज्ञापन मुंशी प्रेमचंद साहित्य परिषद के संयोजक प्रो. संजय द्विवेदी ने किया और संचालन विद्यार्थी दीप्ति तोमर ने किया। इस अवसर पर साहित्यकार कुमार अंबुज, मुकेश वर्मा, संतोष रंजन सहित शहर के गणमान्य नागरिक, विश्वविद्यालय के प्राध्यापक एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।

समय की पदचाप सुनते हैं बड़े रचनाकार : डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर पत्रकारिता विश्वविद्यालय में आयोजन, साहित्य परिषद का गठन भोपाल, 31 जुलाई, 2019: सृजनात्मक साहित्य के साथ प्रेमचंद ने उस समय की पत्रकारिता को भी दिशा दी थी। यदि कोई रचना कल्पना में तैर रही है और वह यथार्थ पर…