आगामी सत्र से विश्वविद्यालयों में लागू होगी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति – मोहन यादव, उच्च शिक्षा मंत्री

विद्यार्थी को मोल्ड नहीं उसमें निहित ज्ञान को अनफोल्ड करना चाहिए – डॉ. उमाशंकर पचौरी

विश्वविद्यालय में एचआरडीसी की स्थापना होगी – प्रो. के.जी. सुरेश

भारतनिष्ठ शिक्षा व्यवस्था में ही भारत का भविष्य है  – प्रो. मजहर आसिफ

म.प्र. में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन

भोपाल 02 मार्च, 2021: नीति आयोग भारत सरकार, भारतीय शिक्षण मंडल और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भारत सरकार के संयुक्त तत्वाधान में देश की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन मंगलवार को हो गया। इस संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के विभिन्न परिसरों के शिक्षकों ने नई शिक्षा नीति को आगामी सत्र से लागू करने की दिशा में मंथन कर रोडमैप तैयार किया।

राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री श्री मोहन यादव ने शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि कोरोना काल में शिक्षा व्यवस्था सर्वाधिक प्रभावित हुई, लेकिन सरकार इस चुनौती से निपटते हुए आगामी सत्र से ही विश्वविद्यालयों में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करेगी। उन्होने कहा कि भले ही हमें समय कम मिला है लेकिन हम इसे लागू करेंगे क्योंकि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति कल का नहीं बल्कि आज का विषय है, उन्होने कहा कि इसको लागू करने में सरकार से अधिक शिक्षकों की अहम भूमिका है।

समापन सत्र के मुख्य वक्ता के रूप में शिक्षाविद् एवं भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. उमाशंकर पचौरी जी ने संबोधित करते हुए कहा कि 1986 में शिक्षा विभाग का नाम बदलकर मानव संसाधन कर देना बड़ी गलती थी, इससे शिक्षा की मूल अवधारणा खंडित हुई। श्री पचौरी ने कहा कि शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थी को मोल्ड नहीं बल्कि उसमें निहित ज्ञान को अनफोल्ड किया जाना चाहिए, और नई शिक्षा नीति इसी अवधारणा पर आधारित है।

डॉ. पचौरी ने विभिन्न प्रसंगों का उदाहरण देते हुए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अवधारणा को बहुत स्पष्ट और प्रभावी ढंग से समझाते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने की चुनौती और यह ईश्वरीय कार्य शिक्षकों को ही करना है इसमें सरकार की बहुत अधिक भूमिका नहीं है। नर पशुओं को शिक्षा के माध्यम से देव मानव बनाया जाना ही शिक्षक का कर्तव्य है और ऋषि संस्कृति इसी की बात करती है।

सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. के.जी. सुरेश ने कहा कि भारतीय संस्कृति शिक्षा और शिक्षक केंद्रित है, यहां एक साधारण शिक्षक भी चाणक्य के रूप में स्थापित होकर समाज हित में व्यवस्था में हस्तक्षेप कर सकता है। इसलिए नई शिक्षा नीति में शिक्षकों पर ही जोर है। प्रो. सुरेश ने कहा कि विश्वविद्यालय यूजीसी के प्रावधान और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप नवाचार करते हुए नए शिक्षा सत्र से इसको लागू कर रहा है। कुलपति ने विश्वविद्यालय में एचआरडीसी की स्थापना करने की भी घोषणा की है।

इससे पूर्व शिक्षक-शिक्षा संवाद में जेएनयू के प्रो. मजहर आसिफ ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन पर शिक्षकों के साथ मंथन करते हुए उनकी जिज्ञासाओं को समाधान किया। प्रो. आसिफ ने कहा कि भारतीय संस्कृति कहीं भी रिलीजन (पंथ) की बात नही करती है बलकी धर्म की बात करती है, इस शिक्षा नीति में मूल्य आधारित भारतनिष्ठ शिक्षा व्यवस्था तैयार की गई है जो भारतीय संस्कृति, ज्ञान, भाषा और जीवन शैली पर आधारित है जिसमें भारत का भविष्य है।

कार्यक्रम का संचालक कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय संगोष्ठी कार्यक्रम के समन्वयक डॉ पवन मलिक ने किया कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर डॉ अविनाश बाजपेई ने किया।