मीडिया में महिलाओं का रहना जरूरी क्योंकि वे ज्यादा संवेदनशील होती हैं – शिफाली पांडे

मीडिया में सबसे बड़ी चुनौती खुद को साबित करने की रहती है – दीप्ति चौरसिया

पत्रकारिता और पत्रकारिता शिक्षा में महिलाओं की भूमिका आवश्यक है – डॉ. उर्वशी परमार

मीडिया में महिलाओं की भूमिका क्लासरूम से शुरू होनी चाहिए – प्रो.  के.जी. सुरेश

भोपाल, 18 मार्च, 2021: मीडिया के क्षेत्र में भी महिलाओं के लिए चुनौतियां हमेशा से रहीं हैं, लेकिन महिलाओं ने इनका समाना कर अपनी जगह बनाई है। जिस दौर में हमने पत्रकारिता शुरू की उस समय समानता के लिए लड़ाई थी जो आज भी है। मगर आज समय आ गया है कि गिलास को आधा खाली न कह कर उसे आधा भरा हुआ कहकर सकारात्मक हुआ जाए। ये विचार न्यूज नेशन मध्यप्रदेश की हेड दीप्ति चौरसिया ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के विशेष संदर्भ में “पत्रकारिता और संचार के क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति एवम् अवसर” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किए।

संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ पत्रकार रूबी सरकार ने अपने लंबे ग्रामीण पत्रकारिता के अनुभव साझा करते हुए कहा कि हम गांवों में महिलाओं को काफी आत्मनिर्भरता देखते हैं, लेकिन इन सभी चीजों को जानने के लिए ग्राउंड लेवल पर जा कर पत्रकारिता करनी होगी और अच्छा कंटेंट, स्टोरी महिलाओं की वास्तविक तस्वीर पेश कर सकती है। उन्होने कहा कि रिपोर्टिंग करते हुए देखा कि ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिला कर हर जगह खेत खलिहान में काम करती हैं बल्कि वो उनसे ज्यादा काम करती हैं मगर उन्हें कभी महिला किसान का दर्जा नहीं मिलता है।

पत्रकारिता और संचार शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका पर अपने विचार रखते हुए डॉ. उर्वशी परमार ने कहा कि हम मीडिया शिक्षा और नारी की बात करें तो इन्हे इन दो शब्दों संवाद और संवेदना से जोड़ कर देख सकते हैं। और इन दोनो का जिसने सामंजस्य बिठा लिया वो अपने क्षेत्र में सफल हुआ है। महिलाएं हर क्षेत्र में अपना दायित्व अच्छे से निभाती हैं। मीडिया की बात करें तो इस क्षेत्र में यदि कोई बच्ची आती है तो वो ये सोच कर आती है कि वो हर चुनौती के लिए तैयार है।

वक्तव्यों की कड़ी में अपने विचार रखते हुए न्यूज़18 की वरिष्ठ पत्रकार पांडे ने कहा कि हमे तो इपनी चुनौतियों को महसूस करने का भी समय नहीं मिला। मीडिया में अपने आप को साबित करने का साथ ही अवांछनीय व्यवहार से बचने की भी चुनौती रहती है। मीडिया में लड़कियों का रहना जरूरी है क्यों कि वो ज्यादा संवेदनशील होती हैं और मुद्दो को संवेदना के साथ पेश करती हैं।

कार्यक्रम में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रो. के जी सुरेश ने कहा कि लैंगिक असमानता जैसे विषयों पर चर्चा होनी चाहिए। ऐसे विषय आपको संवेदनशील बनाते हैं और इन विषयों पर चर्चा क्लासरूम से शुरू होनी चाहिए। प्रो. सुरेश ने कहा कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य छात्रों को इनकी संघर्ष गाथा से परिचित कराना और प्रेरित करना था। जब आप 1057 में मात्र 57 हैं और आप एक दूसरे के प्रति संवेदनशील न हो तो ये चिंता का विषय होता है। वेतन में असमानता गलत है और इसे दूर किया जाना चाहिए। समाज में काफ़ी सकारात्मक परिवर्तन आ रहे हैं और उनका डॉक्यूमेंटेशन जरूरी है। इस राह में कठिनाइयां अधिक है और ये संघर्ष ही सफलता की खूबसूरती है।

यह आयोजन प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो, वूमंस प्रेस क्लब और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया। कार्यक्रम में पीआईबी के एडीजी प्रशांत पाठराबे ने स्वागत उद्बोधन और पीआईबी निदेशक अखिल नामदेव ने विषय प्रवर्तन किया। कार्यक्रम के अंत में कुलसचिव डॉ अविनाश वाजपेई ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन छात्रा दिव्या रघुवंशी ने किया।