इंफोडेमिक महामारी जितना खतरनाक है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनेस्को और भारतीय प्रधानमंत्री ने इसके द्वारा वैक्सीन के प्रति जो हिचकिचाहट पैदा की जा रही है, उसके प्रति चिंता जताई है: कुलपति, एमसीएनयूजेसी

हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति ने दावा किया था कि फेसबुक जैसे प्लेटफार्म वैक्सीन के बारे में गलत सूचना फैलाकर लोगों की हत्या कर रहे हैं

नई दिल्ली, 21 जुलाई, 2021: आजकल इंफोडेमिक एक चर्चित शब्द बन गया है। यह एक विशिष्ट विषय से संबंधित जानकारियों की मात्रा में बड़ी वृद्धि को संदर्भित करता है और जिसकी वृद्धि किसी विशिष्ट घटना, जैसे कि वर्तमान महामारी के कारण कम समय में तेजी से हो सकती है। ऐसी स्थिति में, गलत सूचनाएं और अफवाहें सामने आती हैं, जिससे लोगों को नुकसान होता है। गलत सूचना के नवीनतम/हालिया उदाहरणों में से एक है वैक्सीन/टीका लगवाने को लेकर हिचकिचाहट/संकोच। हम कुछ ऐसे लोगों को देखते हैं, जिन्हें टीकों को लेकर चिंता और अनिश्चितता होगी, जो टीकों के प्रति हिचकिचाहट का कारण सकती है। लेकिन कुछ लोगों को बहुत सारी गलत सूचनाओं के कारण टीकाकरण करवाने में संकोच करने के लिए गुमराह किया गया है।

महामारी की तरह बन चुके इंफोडेमिक की स्थिति का अनुमान/अंदाजा लगाने के लिए हील हेल्थ ने हील-थाय संवाद के 19 वेंएपिसोड के तहत इंफोडेमिकपैनडेमिक ई-शिखर सम्मेलन का आयोजन किया। यह आयोजन हील फाउंडेशन, इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन, डीपीयु और माखनलालचतुर्वेदी नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ जनर्लिज़्म एंड कम्युनिकेशन (एमसीएनयुजेसी) की नॉलेजपार्टनरशिप में किया गया। जिसमें विशेषज्ञों ने हमें इंफोडेमिक महामारी को समझाने के लिए विचार-विमर्श किया।

इंफोडेमिकपैनडेमिक ई-शिखर सम्मेलन हील-थाय संवाद के 19 वेंएपिसोड के दौरान में बोलते हुए,माखनलालचतुर्वेदी नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ जनर्लिज़्म एंड कम्युनिकेशन (एमसीएनयुजेसी) के कुलपति, प्रोफेसर के.जी. सुरेश ने कहा, “इंफोडेमिक, महामारी जितना खतरनाक है, क्योंकि क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनेस्को और भारतीय प्रधानमंत्री ने इसके द्वारा वैक्सीन के प्रति जो हिचकिचाहट पैदा की जा रही है, उसके प्रति चिंता जताई है। इंफोडेमिक एक नई शब्दावली है, जिसमें गलत सूचनाएं और दुष्प्रचार शामिल/सम्मिलित हैं। गलत सूचना मुख्य रूप से सूचना की कमी के कारण होती है, लेकिन बिना किसी बुरे इरादे के। हालांकि, इसका हानिकारक/नुकसान पहुंचाने वाला भाग/हिस्सा यह है कि जब एक नोबलपुरूस्कार विजेता यह दावा करता है कि अगर कोई टीके लगवाता है तो वह दो साल में मर जाएगा। इस गलत सूचना ने कहर बरपाया और वैक्सीन के प्रति लोगों में हिचकिचाहट/संकोच पैदा कर दिया। इंफोडेमिक पर अंकुश लगाने के लिए, हमें मीडिया के छात्रों के साथ-साथ आम लोगों को भी प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। और गलत सूचना फैलाने के लिए जुर्माना लगाना चाहिए।”

इंफोडेमिकपैनडेमिक ई-शिखर सम्मेलन में बोलते हुए, वैक्सीन पब्लिक पॉलिसी एंड हेल्थसिस्टमएक्सपर्ट डॉ. चंद्रकांत लहारिया ने कहा, “जहां तक वैक्सीन के बारे में हिचकिचाहट की बात है, लोग 1798 से ही हिचकिचा रहे हैं, जब से वैक्सीन या टीके अस्तित्व में आए। हालांकि बड़ी संख्या में लोग वैक्सीन लगवाते हैं, फिर भी 30-40 प्रतिशत लोग हिचकिचाते हैं। इंटरनेट से जो जानकारी मिल रही है, हर कोई उसमें गोते लगा रहा है। पोलियो का टीकाकरण शुरू होने के बाद से ही लोगों में आसंजस्य की स्थिति बनी हुई है। कोविड के दौरान हिचकिचाहट का कारण गलत सूचनाएं हैं। हर कोई जानकारी का भूखा है। सरकार को समन्वित व्यवहार परिवर्तन अभियान चलाने के लिए विशेषज्ञ स्वास्थ्य संचार एजेंसियों को शामिल करना चाहिए और एक पेशेवर रूप से तैयार की गई केंद्रीकृत संचार रणनीति लागू करना चाहिए, जिसका सभी हितधारकों द्वारा संयुक्त रूप से पालन किया जाए।”

हील थाय संवाद के दौरान इंफोडेमिक महामारी को समझने पर विचार-विमर्श करते हुए, डॉ. पी. शशिकला, प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष, न्यु मीडिया टेक्नालॉजी विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ जनर्लिज़्म एंड कम्युनिकेशन (एमसीएनयुजेसी), भोपाल ने कहा, “इंफोडेमिक. ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों ही स्तरों पर सूचनाओं की अधिकता है, गलत जानकारियों का प्रसार करने और जन स्वास्थ्य प्रतिक्रिया को कमजोर करने के लिए, ताकि, समूहों तथा व्यक्तियों के वैकल्पिक एजेंडे को आगे बढ़ाया जा सके। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार,   गलत सूचनाएं और दुष्प्रचार लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। गलत सूचना, वह सूचना है जो झूठी है, लेकिन जो व्यक्ति इसे प्रसारित कर रहा है, वह मानता है कि यह सच है। जैसे यह सूचना कि शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाकर कोरोनावायरस को नष्ट किया जा सकता है, गलत सूचना का उदाहरण है। इसी तरह दुष्प्रचार, वह सूचना है, जो गलत है, और इसे प्रसारित करने वाला व्यक्ति भी जानता है कि यह गलत है। यह जानबूझकर फैलाया गया झूठ होता है। हमारे विश्वविद्यालय में, हम अपने छात्रों को इंफोडेमिक और फैक्टचैकिंग के बारे में प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं।”

हील-थाय संवाद श्रृंखला की अवधारणा और आयोजन के पीछे जो व्यक्ति हैं, वह हील फाउंडेशन के संस्थापक और सीईओ डॉ. स्वदीप श्रीवास्तव हैं। उन्होंने कहा, “पिछले साल भारत में कोविड के प्रकोप के बाद शुरू किए गए कोविडफाइटर्सहेल्थसेफ्टीमूवमेंट ने अपने 400 दिन पूरे कर लिए हैं और यह हील-थाय संवाद का 19 वांएपिसोड या कड़ी चल रही है। 26 वेबिनारों की श्रृंखला के माध्यम से हम भारत में 13.5 करोड़ लोगों तक पहुंचे, जिसमें 260 से अधिक चिकितसा और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों तथा प्रमुख महिला प्रभावकों ने पैनलिस्ट के रूप में संबोधित किया और कोविड से संबंधित 2500 से अधिक प्रश्नों का उत्तर दिया गया।”

डॉ. श्रीवास्तव ने आगे कहा, “इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन (आईपीएचए) के समर्थन से हम देश के सबसे बड़े जन स्वास्थ्य अकादमिक निकायों में से एक, इंडिया हेल्थइंफोडेमिकफैक्टचैकिंग नेटवर्क (आईएचआईएफसीएन) शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। जो कि मुख्य रूप से सोशल मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र में स्वास्थ्य संबंधी समाचारों/सूचनाओं के लिए भारत का पहला समर्पित तथ्य-जांच मंच होगा। आईएचआईएफसीएन तथ्य-जांच में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध होगा।”