बाल अधिकारों को पत्रकारिता के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा: प्रो. केजी सुरेश

गुड टच नहीं अब सेफ टच की बात करनी जरूरी: विशाल नाडकर्णी

बच्‍चों के अधिकारों का संरक्षण एक विभाग नहीं, सभी की जिम्‍मेदारी: ब्रजेश चौहान

एमसीयू में यूनिसेफ के सहयोग से ‘बाल अधिकार को लेकर मीडिया विमर्श’ का आयोजन

भोपाल, 18 नवम्‍बर, 2021: अंतर्राष्‍ट्रीय बाल दिवस (29 नवंबर) और बाल अधिकार संरक्षण सप्‍ताह के अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय और यूनिसेफ ने मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यक्रम में माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि बाल अधिकारों के प्रति मीडिया की भूमिका को बढ़ाने के लिए पत्रकारिता के पाठ्यक्रम में बाल अधिकारों को शामिल करने की घोषणा की। उन्‍होंने कहा कि पाठ्यक्रम तैयार करने लिए विश्‍वविद्यालय प्रशासन, महिला एवं बाल विकास विभाग और यूनिसेफ के प्रतिनिधि मिल कर विमर्श करेंगे।

बाल अधिकार और मीडिया विषय पर आयोजित इस कार्यशाला में विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि कोविड 19 महामारी के दौरान अध्‍ययन जरूर बंद था लेकिन विश्‍वविद्यालय ने स्‍वास्‍थ्‍य सम्‍बन्धित मुद्दों पर जागरूकता के लिए अनेक वेबिनार और कार्यक्रम आयोजित किए। विश्‍वविद्यालय को पत्रकार और समाज के बीच सेतु बताते हुए प्रो. सुरेश ने कहा कि पत्रकारिता का अंतिम लक्ष्‍य व्‍यवहार परिवर्तन है। उन्‍होंने कहा कि विश्‍वविद्यालय के विद्यार्थियों को यूं तो बाल अधिकारों के बारे में पढ़ाया जाता है लेकिन अब बाल अधिकारों को व्‍यवस्थित रूप से पाठ्यक्रम का हिस्‍सा बनाया जाएगा।

कार्यक्रम में बतौर विशेष अतिथि मौजूद महिला एवं बाल विकास विभाग के अतिरिक्‍त संचालक विशाल नाडकर्णी ने कहा कि बच्‍चों के लिए कोरोना काल बड़ी मुसीबत साबित हुआ है। विभाग ने बच्‍चों को राहत पहुंचाने का हर संभव प्रयास किया है। स्‍वयं मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संवेदनशीलता के साथ बच्‍चों को राहत देने की योजनाओं को प्राथमिकता दी है। यही कारण है कि प्रदेश में मुख्यमंत्री कोविड-19 बाल सेवा योजना में कोरोना काल में माता-पिता को खो देने वाले बच्चों की आर्थिक सहायता के साथ उन्हें निःशुल्क शिक्षा और निःशुल्क राशन दिए जाने का प्रावधान किया गया है। मुख्यमंत्री कोविड बाल सेवा योजना में 1365 अनाथ बच्चों को लाभ दिया जा रहा है। पाक्‍सो और जेजे एक्‍ट की जानकारी देते हुए अतिरिक्‍त संचालक विशाल नाडकर्णी ने कहा कि बाल अधिकारों का हनन होने या शोषण की जानकारी होने पर भी सूचना नहीं देना अपराध है। सभी की जिम्‍मेदारी है कि वे बच्‍चों के संरक्षण पर ध्‍यान दें। उन्‍होंने कहा कि पहले गुड टच और बैड टच की बात होती थी। लेकिन अब बच्‍चों को गुड टच नहीं सेफ टच की समझ देनी होगी। बच्‍चों को समझाना होगा कि उनके लिए सुरक्षित टच क्‍या है।

बाल अधिकार विशेषज्ञ के रूप में मौजूद मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्‍य ब्रजेश चौहान ने बाल अधिकारों पर विस्‍तार से बात की। उन्‍होंने कहा कि आयोग ने बच्‍चों अधिकारों के मामलों को गंभीरता से सुना है। यही कारण है कि प्रदेश में बाल अधिकारों के उल्‍लंघन की लंबित शिकायतों की संख्‍या 100 से भी कम है। उन्‍होंने कहा कि मीडिया को बाल अधिकरों के उल्‍लंघन और शोषण के मामलों की रिपोर्टिंग संवेदनशीलता और जिम्‍मेदारी से काम करना चाहिए।

यूनिसेफ के संचार विशेषज्ञ अनिल गुलाटी ने बाल अधिकारों और उनसे जुड़े कानूनों की जानकारी दी। उन्‍होंने कहा कि पाक्‍सो और जेजे एक्‍ट में स्‍पष्‍ट प्रावधान है कि बाल अधिकार उल्‍लंघन या शोषण की खबरों में किसी भी तरह से बच्‍चे की पहचान उजागर करना अपराध है। यहां तक कि नवजात शिशुओं के लिए मां के दूध के विकल्‍प के रूप में किसी भी सामग्री का प्रचार प्रसार भी अपराध है। यदि किसी को ऐसी जानकारी मिलती है तो उसे तुरंत प्रशासन की जानकारी में लाना चाहिए।

कार्यशाला में मौजूद वरिष्‍ठ पत्रकार गिरीश उपाध्‍याय ने सुझाव दिया कि सरकार की ओर से बच्‍चों को दी जाने वाली कॉपियों में बाल अधिकारों को प्रकाशित करना चाहिए। इसी तरह पाठ्यपुस्‍तकों में चाइल्‍ड हेल्‍प लाइन के नंबर प्रकाशित करना अनिवार्य‍ किया जाना चाहिए।

कार्यशाला का संचालन विश्‍वविद्यालय के कुलसचिव अविनाश वाजपेयी ने किया। कार्यशाला में वरिष्‍ठ पत्रकार संदीप पौराणिक, सरमन नगेले, मयंक चतुर्वेदी, प्रशांत जैन, अजीत द्विवेदी, दिनेश शुक्‍ला, शरबानी बनर्जी आदि उपस्थित थे।