श्री बृजेश सिंह को रामनाथ गोयनका अवार्ड
खबरों से बनी पहचान – बृजेश सिंह
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभाग में एमए (जनसंचार) (2007-2009) के छात्र रहे श्री बृजेश सिंह ने पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत कम समय में खास पहचान बनाई है। बलिया (उप्र) के एक गांव में जन्में और पिछले 16 साल से प्रिंट और डिजिटल मीडिया में सक्रिय रहे बृजेश सिंह को दो बार रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। 2012 में उन्हें जम्मू-कश्मीर के शरणार्थियों की नागरिकता के मुद्दे पर और 2014 में कश्मीरी आतंकवादियों पर उनकी खोजपरक रिपोर्ट पर यह सम्मान मिला। उन्हें ‘तरूण सहरावत अवार्ड फार जर्नलिज्म आफ कैरेज’ से भी सम्मानित किया जा चुका है। इस कहानी में उन्होंने रेलवे भर्तियों में होने वाले भ्रष्टाचार को उजागर किया था।
पत्रकारिता को जिम्मेदारी भरा दायित्व समझते हुए बृजेश ने जो किया है, उसकी मिसाल कम मिलेगी। इसके अलावा संपादकीय टीम का कुशल नेतृत्व उनकी विशेषता है। बृजेश ने ‘तहलका’ हिंदी के संपादक रहते हुए पत्रिका को बहुत खास तेवर दिए और उनकी स्वयं की समाचार कथाएं पठनीयता में सर्वोच्च रहीं। केंद्र में अपने पाठकों को रखना और सत्ता से आलोचनात्मक विमर्श का रिश्ता उनकी पत्रकारिता की पहचान बन गया। उनके संपादन में तहलका एक ऐसा मंच बना जिसे हिंदी क्षेत्र में बहुत सराहा गया। तहलका के तेवर उन दिनों खास थे। तहलका में वे एक संवाददाता की तरह शामिल हुए और अपनी खबरों से जल्दी ही न्यूज रुम में उनकी खास पहचान बन गयी। उनके संपादन में तहलका अपनी संपादकीय श्रेष्ठता के लिए जाना गया। इसके साथ ही उनके संपादन काल में तहलका की पांच समाचार कथाओं को रामनाथ गोयनका अवार्ड्स मिले। किसी भी संपादक के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। हिंदी तहलका ने बृजेश के संपादन में खोजी और सामाजिक संदर्भों पर रिपोर्ट में मानक स्थापित किए।
बृजेश ‘तहलका’ के बाद ‘वायर’ हिंदी के संस्थापक संपादक बने और यह पूरा हिंदी प्लेटफार्म उनकी अवधारणा के आधार पर लांच किया गया। अपने अनुभवों और तेवरों से बृजेश ने इस आनलाईन प्लेटफार्म को भी बहुत प्रभावी स्वरूप प्रदान कर दिया। उनके कार्यकाल में हिंदी वायर में छपी समाचार कथाओं के लिए उनके अनेक पत्रकारों को रामनाथ गोयनका अवार्ड, रेड इंक अवार्ड,लाडली मीडिया अवार्ड्स भी मिले।
उनकी चर्चित रिपोर्ट्स पर नजर डालें तो कश्मीर संकट पर उनकी गंभीर रिपोर्टिंग, शरणार्थिर्यों के मुद्दे भारतीय खुफियां एजेंसियों पर लिखी समाचार कथाओं के अलावा राजनीतिक, सामाजिक, विकास, मानवाधिकार के संदर्भों पर उनका लेखन बहुत चर्चा में रहा। उनकी भारतीय जासूसों पर छपी समाचार कथा को एपिक चैनल पर भी डाक्यूमेंट्री के रूप में प्रदर्शित किया गया। बृजेश सिंह की समाचार कथाएं बताती हैं कि कैसे मीडिया के माध्यम से जनमुद्दों पर कलम चलाई जा सकती है। उनकी समाचार कथाएं खोजपूर्ण होने के साथ नए विजन और प्रस्तुति की जीवंत गवाही हैं। पत्रिका संपादन और उसकी प्रस्तुति विशेषज्ञता का विषय है तो डिजिटल दुनिया एक अलग कौशल की मांग करती है। बृजेश ने दोनों को साधकर जो काम किया है, उसके चलते ही आप रामनाथ गोयनका अवार्ड से दो बार सम्मानित हुए। सामान्य गांव से निकलकर मिलने वाली ऐसी सफलता की कहानियां पत्रकारिता और समाज दोनों के लिए उदाहरण हैं।