सुश्री प्रियंका दुबे को रामनाथ गोयनका अवार्ड
स्त्री की कहानियां कहती प्रियंका
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के पत्रकारिता में 2007-2009 की छात्रा रहीं प्रियंका दुबे अब देश की जानी-पहचानी लेखक और पत्रकार हैं। पिछले एक दशक से सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों से जुड़े मुद्दों पर अपनी गंभीर रिर्पोटिंग से उन्होंने अंतराष्ट्रीय स्तर पर खास पहचान बनाई है। जेंडर और सामाजिक न्याय उनके प्रिय विषय हैं। इन मुद्दों पर उनके सतत लेखन से उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा जा चुका है। अब वे नई पीढ़ी की सुपरिचित कवि और गद्यकार हैं।
भारतीय पत्रकारिता का सुपरिचित और सम्मानित नाम तो वे हैं ही। हिंदी और अंग्रेजी में अपने सतत लेखन ने उन्हें बहुत जल्दी बौद्धिक वर्गों के बीच स्थापित कर दिया है। अपने एक लेख में वे लिखती हैं-“प्रसिद्धि के साथ एक मज़े की बात यह है कि जब तक प्रत्यय की तरह इसके साथ विडंबना नहीं जुड़ती, तब तक इसके छिपे हुए अर्थ हमारे सामने पूरी तरह उजागर नहीं होते। लेकिन इससे भी ज़्यादा मज़े की बात शायद यही हो सकती कि ज़्यादातर मामलों में विडंबना शोहरत का पीछा करने में ज़्यादा देर भी नहीं लगाती।”
अपनी खास तरह की रिर्पोटिंग से पत्रकारिता में पहचान बना चुकी प्रियंका भोपाल की रहने वाली हैं। इन दिनों वे कभी हिमालय की गोद में और कभी मध्यप्रदेश के भोपाल या इंदौर में होती हैं। उनकी किताब ‘No Nation for Women -Reportage on Rape from India, the World’s Largest Democracy’ ने उन्हें लेखकों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। इस किताब ने प्रियंका को खास पहचान दी। यह उनकी पहली किताब है और इसे 2019 में ही इसे शक्ति भट्ट फ़र्स्ट बुक प्राइज़, टाटा लिटेरेचर लाइव अवार्ड और प्रभा खेतान विमेन्स वोईसे अवार्ड के लिए शॉर्ट लिस्ट लिया गया था। जाहिर तौर पर पहली किताब का इतना जोरदार स्वागत बताता है कि प्रियंका को लंबा रास्ता तय करना है। लम्बे समय से कविताएँ लिखकर संकोचवश छिपाती रहने वाली प्रियंका का दिल साहित्य में बसता है।
अपने कृतित्व के प्रियंका जो सम्मान मिले हैं उनमें 2019 का चमेली देवी जैन राष्ट्रीय पुरस्कार सबसे खास है। जो जर्नलिस्ट आफ द इयर जैसा है। बहुत कम आयु में यह सम्मान पाकर उन्होंने खुद का विशेष होना साबित किया है। इसके अलावा2015 का नाइट इंटरनेशनल जर्नलिज्म अवार्ड, 2014 का कर्ट शोर्क इंटरनैशनल अवार्ड, 2013 का रेड इंक अवार्ड, 2012 का भारतीय प्रेस परिषद का राष्ट्रीय पुरस्कार और 2011 का रामनाथ गोयनका अवार्ड शामिल हैं।
उनकी रिर्पोट 2014 के ‘थामसन फाउंडेशन यंग जर्नलिस्ट फ्राम डिवेलपिंग वर्ल्ड’ और 2013 के ‘जर्मन डेवलपमेंट मीडिया अवार्ड’ में भी चुनी गयीं। स्त्री मुद्दों पर उनकी सतत रिपोर्टिंग के लिए उन्हें तीन बार लाड़ली मीडिया पुरस्कार भी दिया जा चुका है। 2016 में वह लंदन की वेस्टमिनिस्टर यूनिवर्सिटी में चिवनिंग फेलो थीं और 2015 की गर्मियों में भारत के संगम हाउस में राइटर-इन-रेसीडेंस। 2015 में ही सामाजिक मुद्दों पर उनके काम को इंटरनेशनल विमन मीडिया फ़ाउंडेशन का ‘होवर्ड जी बफेट ग्रांट’ घोषित हुआ था। लम्बे समय से कविताएँ लिखकर संकोचवश छिपाती रहने वाली प्रियंका का दिल साहित्य में बसता है। साहित्य के विविध मंचों पर उनकी कविताएं और गद्य लगातार पाठकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। एक कविता में वे कहती हैं-
“तुम्हारे साथ इतनी सुखी हूँ मैं
कि अब मेरे इस सुख से भी
ग्लानि का तीर झाँकने लगा है…”