श्री श्यामलाल यादव को रामनाथ गोयनका अवार्ड
श्यामलाल यादव – सच्चाई की खोज में
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के गौरवशाली पूर्व छात्र श्यामलाल यादव (बीजे-1992-1993)इन दिनों ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से जुड़े हैं। आज की पत्रकारिता जहाँ अक्सर सतही खबरों और टीआरपी की होड़ में उलझी नजर आती है, वहीं कुछ पत्रकार ऐसे भी हैं जो तथ्यों की गहराई में जाकर सच्चाई को सामने लाने का जोखिम उठाते हैं। श्यामलाल यादव उन्हीं गिने-चुने पत्रकारों में से एक हैं, जिन्होंने सूचना का अधिकार (RTI) को खोजी पत्रकारिता का धारदार औजार बना दिया।
श्री यादव ने बीते तीन दशकों में पत्रकारिता को केवल खबरों का मंच नहीं, बल्कि जन सरोकारों की खोज और न्याय की आवाज़ बनाया है। श्यामलाल यादव को पत्रकारिता में उत्कृष्ट योगदान के लिए अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। वे दो बार रामनाथ गोयनका पुरस्कार प्राप्त करने वाले एकमात्र खोजी पत्रकार हैं। उन्हें एसीजे अवॉर्ड, यूरोपीय कमीशन का लोरेन्ज़ो नैटली पुरस्कार, डेवलपिंग एशिया जर्नलिज्म अवॉर्ड, नेशनल आरटीआई अवॉर्ड, स्टेट्समैन रूरल रिपोर्टिंग अवॉर्ड और गणेश शंकर विद्यार्थी अवॉर्ड जैसे सम्मानों से नवाजा गया है।
श्यामलाल यादव को भारत में आरटीआई के माध्यम से खोजी पत्रकारिता की नींव रखने वालों में अग्रणी माना जाता है। उन्होंने आरटीआई का उपयोग करते हुए अनेक महत्वपूर्ण रिपोर्ट्स तैयार कीं, जिनमें प्रदूषित नदियों की वास्तविक स्थिति, जन प्रतिनिधियों की विदेश यात्राएं, सांसदों द्वारा अपने रिश्तेदारों की नियुक्तियाँ, फर्जी जर्नल्स, एलआईसी की लैप्स पॉलिसियाँ, राजनेताओं को दी गई मानद डिग्रियाँ, बैंकों द्वारा जनधन खातों में खुद के पैसे डालने जैसे कई महत्वपूर्ण खुलासे शामिल हैं।इन रिपोर्टों का प्रभाव इतना व्यापक था कि न केवल जनजागरूकता में वृद्धि हुई, बल्कि कई बार संस्थाएं और सरकारें भी जवाबदेही के लिए मजबूर हुईं। मार्च 2023 में उनकी एक बड़ी खोज के बाद न्यूयॉर्क के मेट्रोपॉलिटन म्यूज़ियम ऑफ आर्ट ने भारत को 16 दुर्लभ मूर्तियाँ वापस लौटा दीं, यह उनकी खोजी पत्रकारिता का वैश्विक प्रभाव दर्शाता है।
श्री यादव न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय खोजी पत्रकारिता मंचों पर भी एक सशक्त नाम हैं। वे इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (ICIJ) के सदस्य हैं और ‘पैराडाइज़ पेपर्स’, ‘पेंडोरा पेपर्स’, ‘फिनसेन फाइल्स’, ‘उबर फाइल्स’ और ‘हिडन ट्रेज़र्स’ जैसी विश्वविख्यात खोजी परियोजनाओं में अपनी सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं।30 वर्षों से अधिक के अपने करियर में श्यामलाल यादव ने इंडिया टुडे, अमर उजाला, और जनसत्ता जैसे प्रतिष्ठित समाचार माध्यमों में कार्य किया। वर्ष 2011 से वे द इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े हुए हैं और खोजी पत्रकारिता की उस परंपरा को सशक्त कर रहे हैं, जो सत्य के लिए निर्भीकता की मांग करती है।उनकी पत्रकारिता केवल तथ्यों को उजागर करने तक सीमित नहीं रही, उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर भी सारगर्भित लेखन किया है, जिससे उनकी कलम एक विचारशील दृष्टिकोण की संवाहक बन गई है।उनकी पुस्तक ‘Journalism Through RTI: Information, Investigation, Impact’ (सेज पब्लिकेशन, 2017) एक मील का पत्थर मानी जाती है, जिसे हिंदी और मराठी में भी अनुवादित किया गया है। यह पुस्तक न केवल पत्रकारों बल्कि जनहित में काम करने वाले सभी लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है।
उनकी विशेषज्ञता का लोहा वैश्विक स्तर पर भी माना गया है। उन्होंने यूनेस्को, कोलंबिया यूनिवर्सिटी, लंदन यूनिवर्सिटी जैसे मंचों पर पत्रकारिता, सूचना अधिकार और खोजी पत्रकारिता पर व्याख्यान दिए हैं। भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों, पत्रकारिता संस्थानों और सरकारी संगठनों में वे लगातार संवाद और प्रशिक्षण सत्रों का हिस्सा बनते रहते हैं। सही मायनों में श्यामलाल यादव की पत्रकारिता एक मिशन है। एक ऐसा मिशन जो लोकतंत्र को मजबूत करता है, संस्थाओं को जवाबदेह बनाता है, और समाज में पारदर्शिता की नींव रखता है। उनकी कार्यशैली उन युवाओं के लिए आदर्श है जो पत्रकारिता को महज पेशा नहीं, बल्कि बदलाव का माध्यम मानते हैं। जब सच्चाई की राह कठिन हो, जब सत्ता असहज हो, तब श्यामलाल यादव जैसे पत्रकार समाज के लिए रोशनी की किरण बन जाते हैं। उनका कार्य न केवल पत्रकारिता की गरिमा को बढ़ाने का काम करता है।