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नव सत्र में शिक्षकों को कुलगुरु का पत्र
आत्मीय प्राध्यापकगण,
सादर अभिवादन। जुलाई का महीना शिक्षा परिसरों में नववर्ष की तरह होता है—गर्मी की छुट्टियों के बाद विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय एक नई ऊर्जा के साथ जागते हैं। कक्षाएँ फिर से भरने लगती हैं। देश के कोने-कोने से आए विद्यार्थियों की उपस्थिति से परिसर जीवंत हो उठता है। कोई पहली बार विश्वविद्यालय में प्रवेश करता है, कोई आगे की कक्षा में आता है, और कोई अंतिम वर्ष में है—जो अब जीवन के संघर्षमय संसार में उतरने की तैयारी कर रहा है। यह क्षण केवल संस्था के लिए नहीं, हम सबके लिए भी नवसृजन का समय होता है।
प्राध्यापक के रूप में हमारी भूमिका इन विद्यार्थियों के मध्य केवल एक शिक्षक की नहीं, एक शिल्पी की है। वे केवल अपने ही स्वप्न लेकर नहीं आए हैं—उनके साथ उनके माता-पिता की आँखों में बसे अनेक स्वप्न भी हैं। उन स्वप्नों को आकार देने का उत्तरदायित्व हमारे हाथों में है। वे जिन चेहरों की कल्पना लेकर आए हैं, उन्हें गढ़ने का अवसर विश्वविद्यालय हमें देता है। एक सच्चा शिल्पी कभी अपने शिल्प में शिथिलता नहीं चाहता।
पत्रकारिता विश्वविद्यालय की विशेषता यह है कि यहाँ से निकले विद्यार्थी किसी सुरक्षित और निश्चित प्रणाली में नहीं जाते। वे उस मीडिया जगत में प्रवेश करते हैं जहाँ हर दिन नई चुनौतियाँ, नई अनिश्चितताएँ और नए सृजन की माँग होती है। यह एक ऐसा आकाश है जहाँ गरुड़ अपनी उड़ानों को पहचानते हैं। यही मीडिया की शक्ति है, और यही इस विश्वविद्यालय की महत्ता। हमें गर्व है कि हमारे अनेक पूर्व विद्यार्थी आज राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके हैं। वे हमारे लिए गौरव के स्रोत हैं और नए विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा। इस नए सत्र में, मैं आप सब से कुछ विनम्र अपेक्षाएँ साझा करना चाहता हूँ।
हम सबके पास दोहरा उत्तरदायित्व है—एक शिक्षक के रूप में और एक पूर्व विद्यार्थी के रूप में। हमारे पुराने सहपाठियों में कई ऐसे होंगे जो हमसे अधिक प्रतिभाशाली थे, फिर भी आज संघर्ष कर रहे हैं। यह याद हमें विनम्रता देती है और यह एहसास भी कि हम यहाँ केवल अपनी मेहनत से नहीं, बल्कि परमात्मा की अनुकंपा से भी पहुँचे हैं। इसलिए हर दिन को श्रेष्ठतम देने का संकल्प करें। हमारी कक्षाएँ रोचक, व्यवहारिक और प्रेरणादायक हों। हम समय का पूर्ण उपयोग करें और विद्यार्थियों के सामने एक जीवंत उदाहरण बनें। अध्ययन और शिक्षण के अतिरिक्त लेखन, पठन और संवाद के अभ्यास को निरंतर बनाए रखें।
पिछले वर्ष हमने सौ से अधिक विद्यार्थियों को परीक्षा से वंचित किया, क्योंकि वे आदतन अनुपस्थित थे। इस वर्ष हम चाहेंगे कि कक्षा इतनी प्रभावशाली हो कि अनुपस्थिति का कोई कारण ही न बचे। पहली ही आंतरिक परीक्षा से अनुशासन सुनिश्चित किया जाए। सभी विद्यार्थियों की उपस्थिति जुलाई में ही रजिस्टर्ड हो। साथ ही, समाचार पत्रों और टीवी बुलेटिन की समीक्षा की आदत उनमें विकसित हो। न्यूज़रूम से संवाद नियमित हो ताकि कक्षा और मीडिया के बीच की दूरी घटे। केवल सैद्धांतिक नहीं, व्यावहारिक दक्षता भी लक्ष्य बने।
हमारा विश्वविद्यालय एशिया का पहला पत्रकारिता विश्वविद्यालय है। यह स्थिति केवल गौरव का विषय नहीं, अतिरिक्त जिम्मेदारी भी है। हमें एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना है, जहाँ से निकले विद्यार्थी जीवन में कहीं भी जाएँ, अपने शिक्षकों को न भूलें और आंतरिक कृतज्ञता से भरे रहें। यह तब संभव है जब हम स्वयं को एक सजग शिल्पी की भूमिका में प्रतिदिन ढालें।
2047 में भारत अपनी स्वतंत्रता के सौ वर्ष पूर्ण करेगा। अगले दो दशक निर्णायक हैं। इस कालखंड में हमें केवल प्रयास नहीं, परिणाम देने वाले, अनुशासित, दक्ष और लक्ष्यनिष्ठ नागरिक तैयार करने हैं—मीडिया को जो प्रिंट, टीवी, डिजिटल और सिनेमा में मौलिक योगदान दें।
हर दिन एक नए कैनवास की तरह हो, जिसे हम अपनी रंग-रेखाओं से भरें। हर दिन बीते दिन से अधिक सार्थक और गुणात्मक रूप से बेहतर हो—यही हमारा साझा संकल्प हो।
भवदीय
विजय मनोहर तिवारी
कुलगुरु