कुछ भी लिखने से पहले जरा सोचिए : श्री दयानंद पाण्डेय
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में विशेष व्याख्यान का आयोजन
भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में 26 अगस्त को विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार श्री दयानंद पाण्डेय और अध्यक्षता कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी ने की।
श्री पाण्डेय ने कहा कि छपे हुए अक्षरों को लोग आज भी अंतिम सत्य मानते हैं। इसलिए पत्रकार के नाते हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि हम कुछ भी लिखने से पहले जरा सोचें कि उसका क्या प्रभाव होगा। पत्रकारिता में वह ताकत है कि वह लोगों का जीवन बना भी सकती है और बिगाड़ भी सकती है। इसलिए हमें किसी के बारे में कोई पूर्वाग्रह नहीं रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि समाचार लिखते समय किसी की निजता का हनन न हो।
पत्रकारिता के विद्यार्थियों को अच्छे पत्रकार बनने के सूत्र देते हुए उन्होंने कहा कि हमें कवरेज के लिए जाते समय नदी की तरह होना चाहिए, जो अपने साथ सबकुछ लेकर चलती है। यह हमें बाद में तय करना होगा है कि उसमें से कंकड़ निकालने हैं या हीरे-मोती। उन्होंने कहा कि एक अच्छा पत्रकार बनना है तो हमें अच्छा पढ़ना चाहिए। आजकल विद्यार्थियों में पढ़ने का अभ्यास कुछ कम हुआ है। उन्होंने प्रभाष जोशी, राजेन्द्र माथुर, आलोक तोमर जैसे संपादकों का उदाहरण देकर बताया कि हमारी भाषा समृद्ध और सरस होनी चाहिए। उन्होंने आदिगुरु शंकराचार्य और मंडन मिश्र के संवाद में भारती मिश्र का उदाहरण बताकर कहा कि हमारे यहाँ स्त्रियां भी बहुत विद्वान होती थीं।

श्री पाण्डेय ने कहा कि हमें अच्छा पत्रकार बनकर भारत के संदर्भ में फैलाई गईं भ्रांतियों को भी तोड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं अकसर कहता हूँ कि अकबर के समय में तुलसीदास पैदा नहीं हुए, बल्कि तुलसीदास के समय में अकबर पैदा हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि हमें किसी के पक्ष में खड़ा नहीं होना है, जो देश के पक्ष में बात करे, हम उसके साथ खड़े हों। उन्होंने कहा कि एक पत्रकार के पास विश्वसनीयता के अलावा कुछ नहीं होता। यह विश्वसनीयता हमारी लेखनी से ही आती है। कुलगुरु ने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे अच्छी साहित्यिक पुस्तकें पढ़ें क्योंकि साहित्य के किनारों से टकराकर जब हम आगे बढ़ते हैं तो हमारी भाषा समृद्ध होती है। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार ज्ञापन सहायक प्राध्यापक श्री लोकेन्द्र सिंह राजपूत ने किया। इस अवसर पर विभाग के शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।
(प्रो. पी. शशिकला)
कुलसचिव
