शिक्षा से दूर होता है सामाजिक अन्याय : प्रो. खेमसिंह डहेरिया

कल्पनाओं को साकार करने वाले युगपुरुष थे बाबा साहब : प्रो. केजी सुरेश

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में अंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर स्मृति व्याख्यान का आयोजन, आज 10:30 बजे पुष्पांजलि

भोपाल, 13 अप्रैल, 2022: बाबा साहब अंबेडकर मानते थे कि सामाजिक अन्याय को दूर करना है तो शिक्षा प्राप्त करनी होगी।जब तक आप शिक्षित नहीं होंगे, आगे नहीं बढ़ सकते। यह विचार अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. खेम सिंह डहेरिया ने व्यक्त किए। वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती प्रसंग पर आयोजित स्मृति व्याख्यान में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे। वहीं, कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे एमसीयू के कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा बाबा साहब ऐसे युगपुरुष थे जो कल्पनाओं को यथार्थ पर उतारने में भरोसा रखते थे। संविधान इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कार्यक्रम का आयोजन अनुसूचित जाति–जनजाति प्रकोष्ठ की ओर से किया गया।

‘बाबा साहब का शिक्षा दर्शन’ विषय पर प्रो. खेमसिंह डहेरिया ने कहा कि बाबा साहेब ने सिर्फ अनुसूचित जाति–जनजाति के लिए काम नहीं किया, अपितु सबके हित के लिए अपना जीवन लगाया। प्रो. डहेरिया ने संविधान निर्माण की प्रक्रिया के साथ ही उन सब कानूनों का उल्लेख किया, जो बाबा साहब के प्रयास से तैयार और लागू हुए। शिक्षा के आधार पर ही वे यह सब कर पाए।  प्रो. डहेरिया ने कहा कि पत्रकारिता के क्षेत्र में बाबा साहब के योगदान की अधिक चर्चा नहीं होती। एक निष्ठावान एवं समर्पित पत्रकार के रूप में उनके योगदान पर विमर्श किया जाना चाहिए। बाबा साहब ने समाचार पत्रों का भी प्रकाशन किया, जिनमें मूकनायक, जनता और प्रबुद्ध भारत प्रमुख हैं। इन समाचार पत्रों के माध्यम से भी उन्होंने समाज और देश को सुदृढ़ करने का कार्य किया। इन समाचार पत्रों में उनके लेखों को पढ़कर उनके विचारों की गहराई को समझ सकते हैं। उनका मानना था कि अच्छे विचारों को समाज तक पहुंचाने में समाचार पत्र मुख्य भूमिका निभा सकते हैं।

प्रो. डहेरिया ने कहा कि जो कुछ बाबा साहब ने देखा–भोगा उसके आधार पर यथार्थ कठिनाइयों को पहचाना और उनका समाधान दिया। विपरीत परिस्थितियों के बीच बाबा साहब आगे बढ़े। उनका मतभेद किसी से नहीं था। उनका मानना था कि यदि सुविधाएं कुछ लोगों तक सीमित रहें तो उन्हें सुविधाएं नहीं बल्कि विशेषाधिकार कहना चाहिए। समाज में सुविधाएं सबके लिए समान रूप से उपलब्ध रहनी चाहिए।

प्रो. डहेरिया ने कहा कि बाबा साहब ने राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए गरीब, वंचित, महिलाओं और मजदूरों के हितों का संरक्षण करने वाले कानून बनाए। उन्होंने कहा कि कानून के माध्यम से सब समस्याओं का समाधान संभव नहीं है। समाज में जागृति लाना आवश्यक है। समाज के सहयोग से ही सब बातें ठीक हो सकती हैं।

प्रो. डहेरिया ने कहा कि हिन्दू धर्म का नुकसान न हो इसलिए बाबा साहब ने उससे मिलते–जुलते बौद्ध धर्म को अपनाया। जबकि उस समय अन्य धर्म के प्रमुख बाबा साहेब को अपने धर्म में कनवर्ट करने के लिए खाली चेक तक प्रस्तुत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब के जीवन पर संत कबीर, गौतम बुद्ध और महात्मा फुले के जीवन चरित्र का गहरा प्रभाव रहा। उन्होंने तीनों को अपना गुरु माना और उनकी शिक्षाओं को आगे बढ़ाया।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि बाबा साहब ने कहा कि हम सबसे पहले और आखिर में भारतीय हैं। बाबा साहब के इस मूल मंत्र को हम सबको सदैव याद रखना चाहिए। बाकी सब पहचान इस बड़ी पहचान में विलीन हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि बाबा साहब ने नारा दिया– शिक्षा प्राप्त करो, संगठित हो और संघर्ष करो। इसमें उन्होंने शिक्षा को प्राथमिकता दी क्योंकि वे जानते थे शिक्षा के बिना संगठित हो गए तो उसका परिणाम सार्थक नहीं होगा। प्रो. सुरेश ने कहा कि बाबा साहब ने शिक्षक की भूमिकाओं पर भी विस्तार से प्रकाश डाला है। बाबा साहब मानते थे कि एक शिक्षक ही परिवर्तन ला सकता है। वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति का भी यही मानना है। इसलिए उसके केंद्र में भी शिक्षक है। उन्होंने कहा कि बाबा साहब ने शिक्षा के प्रसार के लिए अनेक प्रयोग किए। इसके लिए कई महत्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना भी की। कुलपति प्रो. सुरेश ने कहा, बाबा साहब कहते थे कि किसी भी समाज की प्रगति को मापने की सबसे बड़ी कसौटी है कि उस समाज में महिलाओं की क्या स्थिति है।

इस अवसर पर कुलसचिव प्रो. अविनाश वाजपेयी ने कहा कि बाबा साहब का शिक्षा पर अधिक जोर था। शिक्षित व्यक्ति ही अपने अधिकारों को जान पाता है। एक शिक्षित व्यक्ति के हाथों में ही समाज को बदलने की ताकत होती है। उन्होंने कहा कि समाज में समानता लाने के लिए भी शिक्षा बहुत आवश्यक है।

इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक एवं विश्वविद्यालय के एससीएसटी सेल के संयोजक श्री प्रदीप डहेरिया ने भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि अपने जन्म के 130 वर्ष बाद भी बाबा साहब सामाजिक उत्थान के आधार बने हुए हैं। बाबा साहब गैर बराबरी के खिलाफ लड़ने वाले योद्धा थे। वे एक सच्चे मानवतावादी थे। उनका संघर्ष समाज में समानता लाने के लिए था। बाबा साहब के विचारों से भाईचारे का संदेश मिलता है। उन्होंने कहा कि बाबा साहब का मत था कि शिक्षा मानव को प्रबुद्ध बनाने वाली होनी चाहिए। कार्यक्रम का संचालन सहायक प्राध्यापक डा. अरुण खोबरे ने किया और आभार ज्ञापन श्री ज्ञानेश्वर ढोके ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, अधिकारी एवं कर्मचारीगण सहित विद्यार्थी उपस्थित रहे।