सिनेमा में पृष्ठभूमि की वास्तविकता दिखाना चुनौतिपूर्ण है – कामाख्या नारायण

सिनेमा में पृष्ठभूमि की वास्तविकता दिखाना चुनौतिपूर्ण है – कामाख्या नारायण

सिनेमा के माध्मय से अछूती और महत्वपूर्ण सूचनाएं लोगों के बीच पहुंचाएं – प्रो. के.जी. सुरेश

आंतरिक शक्ति के माध्यम से हम किसी भी महामारी को जीत सकते हैं – मीना अग्रवाल

सिनेमैटिक कम्युनिकेशन पर फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम संपन्‍न

भोपाल, 18 जून, 2021: माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय एवं एआईसीटीई ट्रेनिंग एंड लर्निंग (ATAL) अकादमी के सहयोग से ‘सिनेमैटिक कम्युनिकेशन’ पर केंद्रित 5 दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम का शुक्रवार को समापन हो गया। समापन सत्र के मुख्य वक्ता के रूप में ‘भोर’ फिल्म से चर्चित फिल्म निर्देशक श्री कामाख्या नारायण सिंह ने संबोधित किया। श्री कामाख्या नारायण सिंह ने कहा कि प्रभावी और समाज उत्प्रेरक फिल्में तभी बन सकती हैं जब आप वह दिखाएं जो आप खुद दिखाना चाहते हैं, न कि वह, जो आपसे बनवाया जा रहा है, समसामयिक मुद्दों को स्क्रीन पर उतार कर भी प्रभावी फिल्में बनाई जा सकती हैं। श्री सिंह ने कहा कि आज सिनेमा में फॉर्मूले बनाना और तोड़ना भी क्रिएटिविटी है, सिनेमा की कहानी में पृष्ठभूमि की वास्तविकता दिखाना और कहानी के लिए सही चरित्र गढ़ना काफी चुनौतीपूर्ण है।

एफडीपी प्रोग्राम में विशेष अतिथि के रूप में एआईसीटीई के क्षेत्रीय निदेशक श्री सी.एस. वर्मा ने कहा कि इस तरह के फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम से शैक्षिक संस्थाओं में अकादमिक गुणवत्ता बढ़ती है, जिसका फायदा समाज को मिलता है।

समापन सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. के.जी. सुरेश ने कहा कि सिनेमा आज भी एक लोकप्रिय और प्रभावी जनमाध्यम है, जो अब डिजीटल तकनीक से और भी सशक्त हो रहा है। लेकिन अभी भी हमारी समृद्ध प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत के कई अनछुए पहलुओं को जनता तक पहुंचाने में सिनेमा की भूमिका का इंतजार है, फिल्मकारों के लिए इसमें काफी संभावनाएं है।

शुक्रवार को अंतिम दिन के पहले सत्र को मैनिट में सहायक प्राध्यापक और डॉ. मीना अग्रवाल ने उर्जा सशक्तिकरण विषय पर अपने व्याख्यान में कहा कि आयुर्वेद योग, एवं भारतीय अध्यात्म में मनुष्य के अंदर विद्यमान सात अदृश्य चक्रों का बड़ा महत्व है, जिनकी सक्रियता से हम अपनी सृजनात्मक शक्ति को बढ़ा सकते हैं। आंतरिक शक्ति के माध्यम से हम किसी भी महामारी पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।

विश्वविद्यालय द्वारा ‘सिनैमैटिक कम्युनिकेशन’ पर आयोजित पांच दिवसीय ऑनलाइन फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम में देशभर के लगभग 200 मीडिया और जनसंचार के शिक्षकों ने भाग लिया। विश्वविद्यालय में एआईसीटीई के को-ऑर्डीनेटर प्रो. सी.पी. अग्रवाल के समन्वय एवं प्रो. पवित्र श्रीवास्तव के संयोजन में आयोजित इस सफल कार्यक्रम के समापन पर सहायक प्राध्यापक डॉ. गजेंद्र अवासिया ने सभी प्रतिभागियों, आमंत्रित विशेषज्ञों एवं व्यवस्था में लगे लोगों का आभार व्यक्त किया।

सिनेमा में पृष्ठभूमि की वास्तविकता दिखाना चुनौतिपूर्ण है – कामाख्या नारायण सिनेमा के माध्मय से अछूती और महत्वपूर्ण सूचनाएं लोगों के बीच पहुंचाएं – प्रो. के.जी. सुरेश आंतरिक शक्ति के माध्यम से हम किसी भी महामारी को जीत सकते हैं – मीना अग्रवाल सिनेमैटिक कम्युनिकेशन पर फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम संपन्‍न भोपाल, 18 जून, 2021: माखनलाल…

एडिटिंग सिनेमैटिक की बैकबोन है – अनिमेश सहाय

एडिटिंग सिनेमैटिक की बैकबोन है – अनिमेश सहाय

सही एडिटिंग कहानी को गुणवत्तापूर्ण बनाती है – डॉ. चंदन गुप्ता

शूटिंग में हाथ खुले रहते है जबकि एडिटिंग में हाथ बंधे रहते है – पी. के. निगम

एमसीयू में सिनेमैटिक कम्युनिकेशन पर एफडीपी प्रोग्राम

भोपाल, 17 जून, 2021:  एमसीयू में सिनेमैटिक कम्युनिकेशन पर रहे एफडीपी प्रोग्राम के अंतर्गत गुरूवार को चौथा दिन सिनेमा एडिटिंग एंड एस्थैटिक पर केंद्रित रहा। सिनेमैटिक से जुड़े तीन प्रोफेशनल ने शिक्षकों को एडिटिंग एवं मल्टीमीडिया से संबंधित अद्यतन जानकारी प्रदान की। जी जेस्ट चैनल के ऑनएयर प्रमोशन्स हेड अनिमेश सहाय ने मल्टीमीडिया टूल्स आफ एडिटिंग पर चर्चा में कहा कि एडिटिंग ही पूरी प्रक्रिया की बैकबोन है, यह इंडिपेंडेंट न होकर एक डिपेंडेंट प्रोसेस है। पोस्ट प्रोडक्शन प्रोसेस आपने आप में एक बड़ी इंडस्ट्री है, जहां तकनीकी स्किल्स के आलावा पोस्ट प्रोडक्शन में कार्य करने की अनेक संभावनाएं है।

इवोल्विंग ट्रेण्ड्स इन एडिटिंग विषय पर एनआईटीटीआर के सीनियर एडिटर पीके निगम जी ने डिटिंग की तकनीक से संबंधित बारीक जानकारी बताते हुए कहा कि फिल्म मेकिंग गुणवत्ता की मांग करती है। किसी भी शॉट की सही एडिटिंग कहानी को गुणवत्तापूर्ण एवं अच्छी तरीके से कह पाती है।

इंस्ट्रक्शनल/एजुकेशनल फिल्म विषय पर ईएमआरसी इंदौर के डायरेक्टर एवं प्रोड्यूसर डा. चंदन गुप्ता ने कहा कि एजुकेशनल फिल्म समय की मांग है लेकिन इसे बनाना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि सच्चाई हमेशा इंटरटेनिंग नहीं होती है न ही रियल एक्टर और लोकेशन इतने आकर्षक होते है। वर्तमान में एक बड़ा टीचिंग लर्निंग प्लेटफार्म भी एजुकेशनल फिल्म को बनाने की तरफ बढ़ा है

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल द्वारा एआईसीटीई ट्रेनिंग एंड लर्निंग (ATAL) अकादमी के सहयोग से ‘सिनेमैटिक कम्युनिकेशन’ पर केंद्रित फेकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम में कल पांचवे और अंतिम दिन चर्चित फिल्म निर्देशिका सुश्री कामाख्या नारायण सिंह प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करेंगी, इसके साथ ही समापन सत्र के अवसर पर अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् के क्षेत्रीय निदेशक श्री टी.एस. वर्मा भी मार्गदर्शन देंगे, जबकि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. के.जी. सुरेश सत्र की अध्यक्षता करेंगे।  

एडिटिंग सिनेमैटिक की बैकबोन है – अनिमेश सहाय सही एडिटिंग कहानी को गुणवत्तापूर्ण बनाती है – डॉ. चंदन गुप्ता शूटिंग में हाथ खुले रहते है जबकि एडिटिंग में हाथ बंधे रहते है – पी. के. निगम एमसीयू में सिनेमैटिक कम्युनिकेशन पर एफडीपी प्रोग्राम भोपाल, 17 जून, 2021:  एमसीयू में सिनेमैटिक कम्युनिकेशन पर रहे एफडीपी प्रोग्राम के अंतर्गत…

कोविड-19 के विरुद्ध डिजिटल शपथ अभियान

कोविड-19 के विरुद्ध डिजिटल शपथ अभियान

दो लाख लोगों से शपथ दिलाने का लक्ष्य

भोपाल, 16 जून, 2021: लोकसंवाद संस्था जयपुर एवं यूनिसेफ राजस्थान की पहल पर देश की दर्जन भर शैक्षिक संस्थाओं ने मिलकर कोविड-19 को लेकर एक डिजिटल शपथ अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भी शामिल है। इसके तहत दो लाख लोगों को डिजिटल शपथ दिलाने का लक्ष्य है। कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि यह अभियान टीकाकरण और कोविड अनुरूप व्यवहार के प्रति समाज में जागरुकता लाने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है।

इस डिजिटल शपथ अभियान में सभी भागीदारों को ई-प्रमाण पत्र मिलेगा। खासकर युवाओं के लिए अपनी रचनात्मकता दिखाने का अवसर भी इसमें है। कोविड-19 से बचाव के संबंध में मोबाइल से फिल्में बनाकर अपलोड की जा सकती हैं। फिल्मों की अवधि 30 सेकेंड से 2 मिनट तक की हो सकती है। बेहतर रचनात्मकता के लिए युवाओं को पुरस्कृत भी किया जायेगा।

इसका अभियान का उद्देश्य समाज में कोविड के टीकाकरण के प्रति जागरुकता पैदा करना है। इस अभियान के तीन पक्ष हैं- 1. शपथ लेनेवाले को शपथ पत्र भरते ही ई सर्टिफिकेट मिलेगा। 2. भागीदार आसपास के दो युवा ( 24 वर्ष तक ) कोरोना योद्धा की कहानियाँ अपलोड कर सकते हैं। 3. वे इस अभियान के संबंध में आधा मिनट से लेकर दो मिनट तक का रचनात्मक वीडियो बनाकर अपलोड कर सकते हैं। चुने गये वीडियो को पुरस्कृत भी किया जायेगा – प्रथम पुरस्कार 5000 रू, द्वितीय पुरस्कार 3000 रू और तृतीय पुरस्कार 2000 रु. का है।

इस लिंक पर क्लिक करके उपरोक्त किसी भी गतिविधि में हिस्सा लिया जा सकता है:-

https://loksamvadindia.org/digital-pledge-drive/

विश्वविद्यालय ने इस अभियान के लिंक को अपनी वेबसाइट पर प्रमुखता से उपलब्ध कराया है। कुलपति प्रो. केजी सुरेश का कहना है कि एमसीयू आरंभ से ही टीकाकरण और कोरोना के प्रति जागरुकता कार्यक्रम चलाता रहा है। साथ ही इस तरह के हरेक रचनात्मक प्रयास में वह सहयोग करता रहा है। उन्होंने कहा कि लोकसंवाद संस्था और यूनिसेफ, राजस्थान की यह एक महत्वपूर्ण पहल है।

कोविड-19 के विरुद्ध डिजिटल शपथ अभियान दो लाख लोगों से शपथ दिलाने का लक्ष्य भोपाल, 16 जून, 2021: लोकसंवाद संस्था जयपुर एवं यूनिसेफ राजस्थान की पहल पर देश की दर्जन भर शैक्षिक संस्थाओं ने मिलकर कोविड-19 को लेकर एक डिजिटल शपथ अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार…

फिल्म निर्देशक कैमरे को कलम की तरह उपयोग करता है – आदित्य सेठ

फिल्म निर्देशक कैमरे को कलम की तरह उपयोग करता है – आदित्य सेठ

फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम में फिल्म निर्माण की बारीकियों पर चर्चा

सिनेमैटिक कम्युनिकेशन पर एफडीपी प्रोग्राम का दूसरा दिन

भोपाल, 15 जून, 2021:  माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा एआईसीटीई ट्रेनिंग एंड लर्निंग (ATAL) अकादमी के सहयोग से आयोजित पांच दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम के अंतर्गत दूसरे दिन कई सिनेमा प्रोफेशनल एवं अकादमिक विशेषज्ञों ने प्रशिक्षण दिया।

फिल्म मेकर एवं फिल्म एकेडमीशियन आदित्य सेठ ने निर्देशन कला विषय के सैद्धांतिक एवं तकनीकी पहलुओं पर चर्चा करते हुए कहा कि निर्देशक कैमरे को कलम की तरह प्रयोग में लाता है जिसके द्वारा वह विजुअल्स की निरंतरता बनाए रखता है। साथ ही एक निर्देशक को लेखन, कैमरा संचालन, सीन और स्टोरी सेटिंग, ब्लोकिंग एवं फिल्म एडिटिंग का भी अनुभव होना चाहिए।   

महात्मा गांधी अंतर्राष्टीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के फिल्म एवं थियेटर विभाग में असिस्टेंट प्रो. यशार्थ मंजुल ने फिल्म प्रोडक्शन एवं मैनेजमेंट की बारीकियों और चुनौतियों के बारे में विस्तार से बताया और अनेक उदाहरणों के माध्यम से फिल्म के प्री प्रोडक्शन, प्रोडक्शन और पोस्ट प्रोडक्शन के प्रैक्टिकल एसपेक्ट पर गहन चर्चा की। उन्होंने कहा कि रियल लोकेशन में शूटिंग के लिए कंट्रोल इंवायरमेंट पाने में दिक्कतें आती हैं। इसके विपरीत कंट्रोल लोकेशन में शूट करना आसान होता है।

विमलेश गोइदेश्वर ने स्क्रिप्ट लेखन के मूल बिंदुओं पर चर्चा करते हुए कहा कि फिल्म लेखन से पूर्व कहानी को स्क्रिप्ट करना बहुत जरूरी है। बिना लिखे हम विजुअल्स को सही तरीके से इमेजिन नहीं कर सकते। एक्शन, विजुअल एवं इमेज प्रभावी रूप स्टोरी टेलिंग को आगे बढ़ाते है। साथ ही स्क्रिप्ट राइटिंग एवं स्क्रिप्ट टेलिंग का अभ्यास भी प्रतिभागियों को ऑनलाइन माध्यम से कराया।

एफडीपी प्रोगराम में कल दीसरे दिन फिल्म एप्रीशिएसन पर उत्पल दत्त, कंटेंपररी विजुअल आर्ट एवं राइटिंग पर प्रो. अमिताभ श्रीवास्तव एंड डायनिमिक विजुअल लैग्वेज पर सुरेश दीक्षित जी संवाद करेंगे।

फिल्म निर्देशक कैमरे को कलम की तरह उपयोग करता है – आदित्य सेठ फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम में फिल्म निर्माण की बारीकियों पर चर्चा सिनेमैटिक कम्युनिकेशन पर एफडीपी प्रोग्राम का दूसरा दिन भोपाल, 15 जून, 2021:  माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा एआईसीटीई ट्रेनिंग एंड लर्निंग (ATAL) अकादमी के सहयोग से आयोजित पांच दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम के…

देश की आत्मा है भाषायी पत्रकारिता : संजय अभिज्ञान

देश की आत्मा है भाषायी पत्रकारिता : संजय अभिज्ञान

साक्ष्य आधारित पत्रकारिता के लिए जाना जाता है प्रिंट मीडिया : प्रो. केजी सुरेश

‘प्रिंट मीडिया में अवसर’ विषय पर एमसीयू में हुआ व्याख्यान

भोपाल, 15 जून, 2021: कोरोना संकट के दौर में समाचार पत्रों के समक्ष चुनौतियां हैं,परन्तु इस विषम परिस्थिति से जूझते हुए प्रिंट मीडिया का भविष्य आज भी उतना ही उज्ज्वल है जितना पहले था। भाषाई पत्रकारिता को हम भारत की आत्मा कह सकते हैं। लोग अपनी भाषा के समाचार पत्र की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। इसलिए भाषायी समाचार पत्रों की प्रसार संख्या तेजी से बढ़ रही है। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित व्याख्यान में यह विचार वरिष्ठ पत्रकार श्री संजय अभिज्ञान ने व्यक्त किये। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने की।

‘प्रिंट मीडिया में अवसर’ विषय पर अपने व्याख्यान में वरिष्ठ पत्रकार श्री संजय अभिज्ञान ने समाचार पत्र के न्यूजरूम हेतु जरूरी स्किल का उल्लेख करते हुए कहा कि नए पत्रकार को तकनीक में दक्ष होना चाहिए। नए पत्रकार को मल्टी लैंग्वेज के साथ-साथ मल्टी स्किल तथा मोबाइल जर्नलिज्म का उपयोग करना आना चाहिए। उन्होंने कहा कि वर्तमान में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का समाज पर व्यापक असर है, इसलिए पत्रकारिता के क्षेत्र में आने वाले विद्यार्थियों को सोशल मीडिया फ्रेंडली भी होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य, कृषि और ग्रामीण विकास जैसे अनेक विषयों की पत्रकारिता हेतु प्रिंट मीडिया में सुनहरा अवसर बना हुआ है।

उन्होंने कहा कि प्रिंट मीडिया के बारे में समय-समय पर अफवाह फैलाई जाती है कि प्रिंट मीडिया अब खत्म होने जा रहा है लेकिन मैं तीन दशक की पत्रकारिता के बाद कह सकता हूं कि प्रिंट मीडिया का भविष्य उज्ज्वल है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1992 में जब प्रिंट मीडिया का एकक्षत्र राज था, उस वक्त टीवी चैनल के प्रवेश ने इस बात को बल दिया था कि प्रिंट मीडिया अब खत्म हो जाएगा परन्तु वह आज भी जिंदा है। 2005 के बाद से डिजिटल मीडिया के पैर पसारने पर भी ऐसी कोरी कल्पनाएं व्यक्त की जा रही हैं, जो यथार्थ से भिन्न हैं। उन्होंने कहा कि डिजिटल प्लेटफॉर्म भी ई-पेपर के रूप में प्रिंट को ही लोग पढ़ रहे हैं। श्री अभिज्ञान ने कहा कि टीवी चैनल की तुलना में प्रिंट मीडिया में रोजगार के व्यापक अवसर हैं। यदि पत्रकारिता के विद्यार्थी अपने कौशल का उन्नयन करते हुए इस क्षेत्र में आते हैं तो वेतन की भी कोई समस्या नहीं है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि प्रिंट मीडिया में आज भी ग्राउंड रिपोर्ट प्रकाशित हो रही हैं। साक्ष्य आधारित पत्रकारिता के लिए प्रिंट मीडिया को जाना जाता है।उन्होंने कहा कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अखबार जिंदा है और जिंदा रहेगा। भारत में समाचार पत्र को किसान, मजदूर, अमीर, गरीब सब पढ़ते हैं। यह हमारी संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में प्रिंट मीडिया ने बहुत अच्छा काम किया है।

इससे पूर्व विषय प्रवर्तन करते हुए पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष डॉ. राखी तिवारी ने कहा कि प्रिंट मीडिया ने कठिन दौर में काफी बदलाव किए हैं और उनके कारण प्रिंट मीडिया के अस्तित्व को कोई खतरा नहीं है। कोरोना काल में विभिन्न समाचार पत्रों द्वारा चलाए गए जागरूकता अभियान को सभी ने सराहा है। कार्यक्रम का संचालन सहायक प्राध्यापक लोकेंद्र सिंह राजपूत ने किया। आभार प्रदर्शन प्लेसमेंट एवं एंटरप्रेन्योर सेल के निदेशक डॉ. अविनाश बाजपेई ने किया। सेमिनार में पत्रकारिता विद्यार्थियों की शंकाओं का समाधान श्री संजय अभिज्ञान ने किया।

देश की आत्मा है भाषायी पत्रकारिता : संजय अभिज्ञान साक्ष्य आधारित पत्रकारिता के लिए जाना जाता है प्रिंट मीडिया : प्रो. केजी सुरेश ‘प्रिंट मीडिया में अवसर’ विषय पर एमसीयू में हुआ व्याख्यान भोपाल, 15 जून, 2021: कोरोना संकट के दौर में समाचार पत्रों के समक्ष चुनौतियां हैं,परन्तु इस विषम परिस्थिति से जूझते हुए प्रिंट…

सिनेमा में सेंसरशिप की जगह रेगुलेशन की आवश्यकता: राहुल रवैल

सिनेमा में सेंसरशिप की जगह रेगुलेशन की आवश्यकता: राहुल रवैल

सार्थक और प्रभावी सिनेमा बनाने आगे आए युवा प्रतिभा: प्रो. केजी सुरेश

फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम में जाने-माने फिल्मकार राहुल रवैल का संवाद

भोपाल, 14 जून, 2021: ओटीटी प्लेटफार्म पर अपराध, असामाजिकता और अनैतिकता का महिमामंडन उचित नहीं है। हालांकि मैं सेंसरशिप का समर्थन नहीं करता, उसके लिए तो दर्शक खुद सक्षम हैं। लेकिन आपत्तिजनक कंटेंट को रोकने के लिए स्वयं की जिम्मेदारी के साथ रेगुलेशन की भी आवश्यकता है। बेताब और अर्जुन समेत कई लोकप्रिय हिंदी फिल्मों के निर्माता निर्देशक राहुल रवैल ने मीडिया एवं जनसंचार शिक्षकों से यह बात कही। श्री रवैल सोमवार को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित पांच दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम के अंतर्गत शुभारंभ सत्र को संबोधित कर रहे थे।

एआईसीटीई ट्रेनिंग एंड लर्निंग (ATAL) अकादमी के सहयोग से ‘सिनेमैटिक कम्युनिकेशन’ पर केंद्रित एफडीपी में निर्माता निर्देशक राहुल रवैल ने कहा कि संचार के रूप में सिनेमा एक सशक्त और अद्भुत माध्यम है। सिनेमा का संचार लोगों को प्रभावित करता है। ओटीटी प्लेटफार्म के आने से सिनेमा में अवसरों की संभावनाएं काफी बढ़ गई हैं। यहां युवा अच्छा कार्य कर रहे हैं। अपने व्याख्यान के बाद राहुल रवैल ने प्रतिभागी शिक्षकों के प्रश्नों के उत्तर दिए और जिज्ञासाओं का समाधान किया।

शुभारंभ सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि भारतीय सिनेमा को हॉलीवुड की नकल न करके मौलिकता पर ध्यान देना चाहिए। हमारे पास यंग टैलेंट है, जिसका उपयोग हो तो हम सिनेमा के क्षेत्र में अद्भुत कार्य कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि जो फिल्म रोफेशनल सिनेमैटिक लैंग्वेज समझते हैं, वह सफल होते हैं, लेकिन इस क्षेत्र में भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कई जिम्मेदारियों को लेकर आती है, जिसे समझने की आवश्यकता है। सिनेमा समाज को मोटिवेट करता है जो समाज में परिवर्तन का एक बड़ा कारण बन सकता है।

पहले दिन दूसरे तकनीकी सत्र सत्र में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के निदेशक श्री आलोक चटर्जी ने न्यू जोनर्स ऑफ विजुअल कम्युनिकेशन विषय के साथ ड्रामा की विविध विधाओं के सौद्धांतिक पक्ष को समझाया। तीसरे तकनीकी सत्र में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्लिकल टीचर्स ट्रनिंग एंड रिसर्च के प्रो. राजीव शंकर गोहिल ने भारतीय सिनेमा के इतिहास, विकास एवं बदलते प्रतिमान पर विस्तार से प्रकाश डाला। विश्वविद्यालय द्वारा ‘सिनैमैटिक कम्युनिकेशन’ पर आयोजित पांच दिवसीय ऑनलाइन फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम में देशभर के लगभग 200 मीडिया और जनसंचार के शिक्षक भाग ले रहे हैं।

कुलसचिव प्रो. पवित्र श्रीवास्तव ने कार्यक्रम का संयोजन किया और सहायक प्राध्यापक डॉ. गजेंद्र सिंह अवास्या ने शुभारंभ सत्र का संचालन किया।

सिनेमा में सेंसरशिप की जगह रेगुलेशन की आवश्यकता: राहुल रवैल सार्थक और प्रभावी सिनेमा बनाने आगे आए युवा प्रतिभा: प्रो. केजी सुरेश फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम में जाने-माने फिल्मकार राहुल रवैल का संवाद भोपाल, 14 जून, 2021: ओटीटी प्लेटफार्म पर अपराध, असामाजिकता और अनैतिकता का महिमामंडन उचित नहीं है। हालांकि मैं सेंसरशिप का समर्थन नहीं करता, उसके लिए…

हिंदुस्तान का भविष्य उज्ज्वल, युवा उसके निर्माता – डॉ. हरीश शेट्टी

हिंदुस्तान का भविष्य उज्ज्वलयुवा उसके निर्माता – डॉ. हरीश शेट्टी

जीवन सांप-सीढ़ी का खेलआते हैं उतार-चढ़ाव – प्रो. के.जी. सुरेश

भोपाल, 12 जून, 2021: स्वीकार्यता जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। समय के साथ बदलाव को अपनाइए, इससे भागिए नहीं। डर को स्वीकार करना साहस का कार्य है। देश के जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ. हरीश शेट्टी ने सफल और खुशहाल जीवन पर केंद्रित व्याख्यान में कई सूत्र दिए। यह विचार उन्होंने शनिवार को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित व्याख्यान में व्यक्त किये।

कोरोना महामारी के दौर में देश और समाज में व्याप्त दुख और भय के वातावरण को दूर करने के लिए विश्वविद्यालय की कोविड रिस्पॆड टीम द्वारा आयोजित यह व्याख्यान “सफल और खुशहाल जीवन” पर केंद्रित था। व्याख्यान में डॉ. हरीश शेट्टी ने कहा कि आपदा में अवसर है इसका इस्तेमाल करते हुए जीवन में कुछ आवश्यक बदलाव करना चाहिए। आपको जैसा शरीर और सामाजिक स्टेटस मिला है उसे स्वीकार करें, इसमें कोई आत्मग्लानि का बोध नहीं होना चाहिए। लेकिन बदलाव और उन्नति के लिए आत्मविश्वास के साथ अपने काम में लगे रहें। समाज के साथ समवाद में आप ब्लूमर बनिए ब्लेमर नहीं तभी सफल हो सकेंगे।

डॉ शेट्टी ने पारिवारिक वातावरण की चर्चा करते हुए कहा कि परिवार में संवाद खत्म हो रहा है, मोबाइल पर उंगलियां चलाने की जगह अपने हाथ पैर चलाएं क्योंकि व्यायाम ही आपको स्वस्थ रखेगा। यह आप खुद भी करें और बच्चों के लिए भी लागू करें। भावनाएं बांटने से संबंध मजबूत होते हैं, जबकि सूचना देने मात्र से केवल आइसोलेशन होता। योग और प्राणायाम को जीवन का अंग बनाइए क्योंकि अमेरिका जैसे देश की नेवी अपने सैनिकों को योग करवाती है। विद्यार्थियों से संवाद करते हुए डॉ. शेट्टी ने कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं कि हिंदुस्तान का भविष्य उज्जवल है और आप उसके निर्माता हैं। समय कठिन है लेकिन अभी पिक्चर बाकी है

इससे पूर्व विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर के.जी. सुरेश ने विषय का प्रवर्तन करते हुए कहा कि जीवन सांप सीढ़ी का एक खेल है, जिसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, इसलिए चिंतित रहने की जरूरत नहीं है। जिंदगी में सकारात्मकता को बनाए रखकर हम कठिन समय में भी डटे रह सकते हैं। डॉ. शेट्टी के उत्प्रेरक व्याख्यान के बाद विद्यार्थियों और शिक्षकों ने उनसे जीवन की कठिनाइयों और समस्याओं पर कई प्रश्न और अपनी जिज्ञासाएं रखी, डॉ. शेट्टी ने सभी को मार्गदर्शन प्रदान किया।

कार्यक्रम का संचालन एवं समन्वयन श्री लालबहादुर ओझा, सहायक प्राध्यापक ने किया, अंत में कुलसचिव प्रो. पवित्र श्रीवास्तव ने आभार व्यक्त किया।

हिंदुस्तान का भविष्य उज्ज्वल, युवा उसके निर्माता – डॉ. हरीश शेट्टी जीवन सांप-सीढ़ी का खेल, आते हैं उतार-चढ़ाव – प्रो. के.जी. सुरेश भोपाल, 12 जून, 2021: स्वीकार्यता जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। समय के साथ बदलाव को अपनाइए, इससे भागिए नहीं। डर को स्वीकार करना साहस का कार्य है। देश के जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ. हरीश शेट्टी ने सफल और खुशहाल…